रिश्वतखोरी के आरोपी सिटी प्लानर प्रदीप वर्मा को क्यों मिली इतनी जल्दी जमानत

रिश्वतखोरी के आरोपी सिटी प्लानर प्रदीप वर्मा को क्यों मिली इतनी जल्दी जमानत
आरोपी सिटी प्लानर प्रदीप वर्मा

भ्रष्टाचार निवारण की धारा गैर जमानती, लेकिन एक अस्थाई निर्देश पर 17 वर्ष से स्थायी रूप से मिल रही है जमानत
ग्वालियर। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(डी), 3, 7 गैर जमानती हैं, लेकिन 17 वर्ष पूर्व लोकायुक्त जारी किए गए अस्थायी अादेश के बाद भ्रष्टाचार के गैर जमानती अपराध में स्थायी रूप से जमानत दी जा रही है। जबकि देश के अन्य राज्यों में भ्रष्टाचार के मामलों अारोपियों की गिरफ्तारी की जा रही है। सिटी प्लानर प्रदीप वर्मा को 50 लाख रुपए की रिश्वत की डील पर 2 लाख की बड़ी रकम की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने अौर ईअोडब्ल्यू व लोकायुक्त में भ्रष्टाचार के लगभग 12 मामले लंबित होने के बाद भी तत्काल जमानत दे दी गई। जबकि अारोपी से 50 लाख रुपए की रिश्वत की मांग व जांच में चल रहे मामलों की पूछताछ के लिए गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया जाना चाहिए था।
भ्रष्टाचार के मामलों में लोकायुक्त व ईअोडब्ल्यू दोनों जांच एजेंसी 2003 मेंे लोकायुक्त पुलिस की हिरासत में वाणिज्यक कर अधिकारी ऋषभ कुमार जैन की मौत के बाद तत्कालीन लोकायुक्त ने भ्ष्टाचार के मामलों अारोपी को जमानत पर छोड़े जाने के निर्देश जारी किए थे। जबकि देश के अन्य राज्यो‌ं में व केंद्रीय जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार के अधिकांश मामलों में अारोपी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जाता है।
अस्थाई निर्देश से भ्रष्टाचारियों को फायदे
भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जाने अारोपी व जांच एजेंसी के अफसर अस्थाई निर्देश से अपने-अपने लाभ लेकर इस्तेमाल करते हैं। भ्रष्टाचार के अारोपी जमानत पर छूटने के बाद शिकायतकर्ता पर दबाव बनाने के साथ ही दस्तावेज गायब करने व मामले से बचने के दांवपेंच कर फायदा उठाते हैं।

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