
(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)
ग्वालियर05अक्टूबर2022।नगर निगम में आउटसोर्स पर नियुक्तियों में फर्जीवाडे को लेकर पूरे प्रदेश में ग्वालियर की छीछालेदर हो रही है। निगम के जिस विभाग पर नजर डालो, वहीं आउटसोर्स की नियुक्तियों में अनियमितताएं सामने आ रही है कई आला अधिकारी इस मामले में फंसते नजर आ रहे है। मामले की जांच के लिए कमिश्नर किशोर कान्याल ने कमेटी तो बना दी है लेकिन कमेटी की जांच किसी भी अधिकारी के खिलाफ शिकंजा कस पाएगी, इसमें संशय है। क्योंकि इसमें अपर आयुक्त से लेकर उपायुक्त और अन्य स्तर के अधिकारियों की भूमिका प्रथम दृष्टया नजर आ रही है।
वहीं इस मामले के छींटे आयुक्त किशोर कान्याल पर भी उडे. है। दरअसल जिस तरह से इस मामले का खुलासा हुआ और उसमें जिम्मेदारों की भूमिका सामने आई है उस लिहाज से जो कार्यवाही होनी थी वह नही हुई, कुछ छोटे कर्मचारियों को निलंबित कर अन्य के महज तबादले ही किए गए। निगम के दफ्तर से आउटसोर्स कर्मचारियों को भर्ती किए जाने के जो आदेश निकलकर बाहर आए है उसमें स्पष्ट है कि तमाम अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही भर्ती की, जिन्हे भर्ती किया, उन्हे कैसे चुना गया, उसका कोई जबाब नही है।
वैसे नगर निगम कमिश्नर किशोर कान्याल बेहद सुलझे हुए प्रशासनिक अधिकारी माने जाते है उन्होने ग्वालियर में ही अपनी नौकरी का लंबा वक्त गुजारा है मंडी सचिव, एसडीएम, सीईओ साडा, सीईओ जीडीए, एडीएम के बाद आईएएस होकर सीईओ जिला पंचायत के बाद नगर निगम कमिश्नर है। उनकी छवि ईमानदार और काम करने वाले अधिकारी की मानी जाती है ऐसे में निगम का आउटसोर्स घोटाला उनकी साख खराब करने वाला ऐपिसोड है इस एपिसोड पर ढीली कार्यवाही भी उनकी छवि से मैच नही करती, इससे लगता है कि वो दागी अधिकारियों को बचाने का प्रयास कर रहे है या फिर उनके ऊपर मामले को रफा दफा करने का राजनीतिक दबाव है दबाव स्थानीय स्तर के मंत्री संत्रियों का है या फिर ऊपर से….ये कमिश्नर साहब ही बेहतर समझते है।
कान्याल साहब की छवि तालमेल बनाकर काम करने की रही है फिर चाहे वो अपने वरिष्ठ या कनिष्ठ अधिकारियों के साथ हो, या फिर सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधियों के साथ….उनका मृदु व्यवहार भी उनके व्यक्तित्व का सकारात्मक पक्ष है इस हिसाब से नगर निगम में हुए इस फर्जीवाडे के दो पहलू साफ नजर आते है पहला ये कि कमिश्नर साहब की सहजता का अधिकारियों ने फायदा उठाया और दूसरा ये कि सबकुछ जानते हुए भी अनापेक्षित अप्रिय घटनाक्रमों को टालने के लिए कमिश्नर साहब ने आँखे बंद रखी या जानबूझकर अंधेरे में बने रहे। लेकिन उनके इस कदम से ग्वालियर नगर निगम के आउटसोर्स घोटाला पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है और उसके बाद भी इस पर हो रही लीपापोती जनता में भी साहब की छवि बिगाड रही है।
नवाचार कार्यशैली के लिए पहचान रखने वाले कमिश्नर कान्याल के कार्यकाल में भी नगर निगम शहर के लिए कोई बडी उपलब्धि नही बना पाया, फिर चाहे वो डोर टू डोर कचरा संग्रहण का मामला हो, अमृत योजना, सीवर सफाई, खराब सडकों की बात हो…यहां तक कि स्वच्छ सर्वेक्षण की रैंकिंग में भी ग्वालियर तीन पायदान नीचे गिरकर 15 से 18 पर आ गया।
खैर ये ग्वालियर का दुर्भाग्य है कि यहां आने वाले बेहतर, अनुभवी, लगनशील, काम करने वाले अधिकारी भी नेताओं को साधने लगते है लिहाजा उनका जो काम है वो काम हो ही नही पाता, ग्वालियर में राज्य और केंद्रीय मंत्रियों का जमावडा है उसके बाद ये हालत है फिर ऐसे में ये घोटाले भी रही सही कसर पूरी कर रहे है। जनप्रतिनधियों के प्रति अधिकारियों की जबाबदेही है ये बात सही है लेकिन अधिकारियों को अपना मूल काम भी अपने कर्तव्य के तौर पर देखना चाहिए और ये भी देखना चाहिए कि केवल नेता ही नही शहर की जनता भी उनके काम की रैंकिंग करती है और उनके मुंह पर न सही….लेकिन छवि का आंकलन कर टिप्पणी भी करती है और यही छवि अधिकारियों के जाने के बाद भी उस शहर में बनी रहती है
नगर निगम कमिश्नर को आउटसोर्स घोटाले में अपनी छवि को दांव पर लगाने से बचना चाहिए, दोषियों को कम से कम अपनी तरफ से तो अभयदान नही देना चाहिए, अगर संबंधित दोषी के रसूख के चलते कार्यवाही नही भी हो पा रही है तो कम से कम उस अधिकारी की ख्याति तो सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि कमिश्नर की साख पर बट्टा न लगे।
संभव है निगम कमिश्नर कान्याल की अगली पोस्टिंग किसी जिले में कलेक्टर के तौर पर हो, उस समय भी ग्वालियर से जाने के बाद शहर उनके कार्यकाल को याद करेगा, कि उन्होने अपनी अफसरी के दौरान शहर और जनता को क्या दिया, और अपने पद के साथ न्याय करके शहर से विदा हुए है ये तय उन्ही को करना है वो किस तरह याद किया जाना चाहते है उदाहरण के तौर पर चिटफंड कंपनियों, जमीनों की फर्जी खरीद फरोख्त और शहर में अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ कार्यवाही के लिए अभी भी शहर में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी की चर्चा की जाती है


