जागिए ग्वालियरवासियों…नेतापुत्रों का बड्डे है और देखिए चुनावी साल में नेतापुत्रों की लांचिग का ट्रेलर

(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)

ग्वालियर17जनवरी2023। ग्वालियर में नेता पुत्रों के जन्मदिन का जश्न शक्तिप्रदर्शन की तरह नजर आता है जन्मदिन के सेलिब्रेशन का स्टायल भी कुछ इस तरह का होता है जिससे न केवल पूरे जिले बल्कि पूरे प्रदेश में ये मैसेज जाए कि आज के दिन फलां नेता के पुत्र पैदा हुए थे और ये बात सभी को जानना जरूरी है। लोग इस बात को जानें, इसके लिए होर्डिंग लगाए जाते है, फ्लैक्स चिपकाए जाते है, तोरण द्वार..स्वागत द्वार बनाए जाते है कई युवा लडके जो सोशल मीडिया पर इन नेतापुत्रों के नाम से फैन क्लब चलाते है वो बाइक रैली निकालते है।  बाकि कसर इन पुत्रों के नेता पिता पूरी करते है। और खुद बड्डे के प्रोग्राम से नदारद रहते है ताकि फोकस पुत्र पर ही रहे।

अब आते है मुद्दे पर…ग्वालियर में 16 जनवरी को प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के पुत्र सुकर्ण का जन्मदिन था तो 17 जनवरी को भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के पुत्र तुष्मुल और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर(रामू) का जन्मदिन था। जो लोग राजनीति में दिलचस्पी में लेते है और जो नही लेते है वो भी जानते है कि इन नेता पुत्रों को अपने बड्डे के इतने बडे मजमे के बदले गिफ्ट में पार्टी से टिकट चाहिए रहता है। सारी कवायद इसीलिए है। सुकर्ण मिश्रा के लिए डबरा तो तुष्मुल और देवेंद्रप्रताप के लिए ग्वालियर शुभकामनाओँ संदेशों के होर्डिंग और विज्ञापनों से अटा पडा है।

तुष्मुल झा के बड्डे की तैयारी काफी दिनों से हो रही था करीब 20 हजार लोगों को बड्डे पर जुटाने का लक्ष्य रखा गया था करीब 10 दिन पहले से शहर में फ्लेक्स होर्डिंग का जमावडा किया जा रहा था ये बात अलग है कि उनके पिता प्रभात झा ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनते ही सबसे पहले फलैक्स होर्डिंग प्रथा को गलत बताते हुए बंद करने को कहा था बहरहाल तुष्मुल झा चुनाव लडने की इच्छा रखते है और ये चुनावी साल भी है ऐसे में ये बड्डे के बहाने पहला शक्ति प्रदर्शन माना जा सकता है। लेकिन बीजेपी में आलाकमान परिवाद और वंशवाद  के विरोध की बात हर मंच से कहता है मोदी-शाह का कांग्रेस पर अटैक ही परिवारवार की बात से शुरू होता है ऐसे में नेतापुत्रों को टिकट के लिए ये सब करना पड रहा है ताकि वो अपनी उपस्थिति येन केन प्रकारेण ऊपर तक दिखाकर अपनी मार्केट वेल्यू बड्डे के बहाने दिखा सके।

सुकर्ण मिश्रा के भी बड्डे के लिए डबरा प्रचार सामग्रियों से अटा पडा है पिता गृहमंत्री है तो समझना लाजिमी है कि पुत्र के बड्डे का कितनों को इँतजार रहा होगा, वैसे सूत्र बताते है कि सुकर्ण अपने बड्डे पर डबरा में नही थे परिवार सहित कहीं बाहर थे वैसे भी सुकर्ण कई कार्यक्रमों में पहले से ही भागीदारी लगातार कर रहे है जनता से मिल रहे है और नेता की तरह उनका व्यवहार भी आम जनता में नजर आने लगा है।

देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर (रामू) को स्थापित होने का लंबे समय से इंतजार है हांलाकि इस बार उन्होने अपने जन्मदिन पर कोई बडा आयोजन नही किया, लेकिन उन्हे शुभकामनाएँ देने वालों का हुजूम उमडा हुआ था लेकिन रामू केवल बड्डे तक ही सीमित नही है बल्कि लगातार धार्मिक सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते है।

हांलाकि ग्वालियर और भी नेता पुत्र है लेकिन जिन्हे उनके पिता लांच करना चाहते है और जो खुद भी माननीय बनने की इच्छा रखते है उनमें ये ही प्रमुख है हांलाकि बीजेपी में मोदी-शाह के जमाने में अब पुत्रों को टिकट दिलाना नेता, मंत्री, विधायकों को लिए टेडी खीर साबित हो गई है

अपने पुत्र आकाश को टिकट दिलाने के लिए मध्यप्रदेश के बेहद कद्दावर नेता रहे कैलाश विजयवर्गीय को अपने टिकट की बलि देनी पडी थी वहीं विजयवर्गीय को प्रदेश से बाहर केंद्रीय संगठन लाकर उनकी स्थिति प्रदेश में कमजोर ही कर दी। वहीं कई ऐसे भी प्रदेश में नेता है जो पुत्रों को टिकट दिलाने के चक्कर में खुद भी पार्टी में दूख की मक्खी की तरह हो गए है ऐसे में गृहमंत्री मिश्रा और केंद्रीय मंत्री तोमर को अपने पुत्रों को लांच करने के लिए क्या खुद की माननीय की पोजीशन छोडनी पडेगी या फिर उनकी सेटिंग तगडी है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। रही बात प्रभात झा की, तो वो फिलहाल संगठन में लंबे समय से हाशिए टाइप पर ही है एक तरह से उनके पास खोने के लिए कुछ नही है तो वो अपने पुत्र के लिए पूरी ताकत से जुट सकते है।

वहीं एक सवाल ये भी है कि अगर नेता पुत्रों को ही टिकट मिला, तो बीजेपी के बाकी के ‘’देवदुर्लभ’’ कार्यकर्ताओं का क्या होगा, क्योकि परिवारवाद की परंपरा को तो भाजपाई जहर मानते है दूसरी बात अगर बीजेपी में ये परंपरा चल रही होती तो शायद आज पुत्रों के पिता पार्टी में भी दरी,चटाई और झंडे-डंडे ही उठा रहे होते। लेकिन समय है बदलता रहता है और सोच भी।

खैर देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं की भीड के साथ बड्डे का जश्न मनाने वाले सभी नेतापुत्रों को शुभकामनाएँ…उम्मीद है कि अगली बार भी अपना बड्डे ऐसे ही मनाएँ।  

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