( जितेंद्र पाठक, ग्वालियर )
ग्वालियर। ग्वालियर अंचल के एक सरकारी मेडीकल कॉलेज के डॉक्टर साहब सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों ही जगहों से मेवा प्राप्त करने का आनंद उठा रहे है सरकारी मेडीकल कॉलेज में डीन की कुर्सी पर तो वो जमे ही है एक बडे निजी अस्पताल का संचालन भी उनके द्वारा किया जा रहा है इस अस्पताल में उनका सहयोग करने वाले दूसरे डॉक्टर्स भी पार्टनर है। वहीं डॉक्टर साहब के सरनेम वाले एक बडे नामी गिरामी बिल्डर भी इस अस्पताल से बतौर पार्टनर वास्ता रखते है।ग्वालियर से शिवपुरी जाने वाले मार्ग पर बने इस अस्पताल का नाम डीन महोदय के मेडीकल स्पेश्लाइजेशन की ख्याति के चलते जल्दी ही पहचाना जाने लगा है। वहीं अस्पताल से जुडे एक अन्य पार्टनर डॉक्टर भी डीन महोदय वाली मेडीकल स्पेश्लाइजेशन रखते है जिसका लाभ अस्पताल को मिला है।
डीन की पोस्ट है नॉन प्रेक्टिंसिंग
अब बात मुद्दे की…सरकारी मेडीकल कॉलेज के डीन की पोस्ट नॉन प्रेक्टिसिंग होती है (मेडीकल कॉलेज से संबद्ध अस्पताल के अधीक्षक की पोस्ट भी नॉन प्रेक्टिसिंग है) यानि नियम के हिसाब से वो प्रेक्टिस नही कर सकते है। यदि वो अपने सरकारी आवास पर भी कंसल्टेशन देना चाहते है तो इसके लिए भी सरकारी आदेश जरूरी है। लेकिन यहां नियम हवा हो चुके है डीन की कुर्सी की गर्माहट ले रहे डॉक्टर साहब फिलहाल अपना पूरा समय और श्रम अपने निजी अस्पताल को ही दे रहे है। चूंकि सरकारी सेवा की मजबूरी है तो खुद को ऑन डॉक्यूमेंट अपने निजी अस्पताल से अलग रखा है लेकिन ग्वालियर से शिवपुरी जाने वाले ‘’लिंक’’ रोड पर बने इस अस्पताल के संचालन में एक्टिव भूमिका के लिए अपने परिजनों को जरूर ‘’ लिंक ‘’ कर रखा है। मगर डीन महोदय बाकायदा इस अस्पताल में कंसलटेशन से लेकर सर्जरी तक सारे काम खुद ही निपटाते है। यहां तक कि सर्विस प्रोवाइडर संस्थाओं के CONTACT NUMBER और ADRESS उपलब्ध कराने वाले ONLINE प्लेटफार्म ‘’JUST DIAL’’ पर उस निजी अस्पताल के फोटो पर डीन महोदय का नाम, लैंडलाइन और मोबाइल नंबर के साथ तक उपलब्ध है।
अपने निजी हॉस्पीटल की ज्यादा चिंता
चर्चा है कि डीन की कुर्सी के अधिकारों का इस्तेमाल अपने निजी अस्पताल की ग्रोथ के लिए भी किया जा रहा है। यानि सरकारी मेडीकल कॉलेज के लिए सेवाएं देने वाली एजेंसी और ठेकेदार भी डॉक्टर साहब के निजी अस्पताल की सेवा करने के लिए तत्पर रहते है। सूत्र कहते है कि शांत और गंभीर दिखने वाले डॉक्टर साहब इन पार्टियों से बात तभी करते है जब दीवारों के कान भी बंद होते है।
गिरते गिरते बचा है विकेट
अपने हरीराम कहते है कि प्रभारी डीन की कुर्सी संभाल रहे डॉक्टर साहब का विकेट कुछ दिन पहले चटकने की भी चर्चा थी लेकिन बताया जा रहा है कि एक केंद्रीय मंत्री के हस्तक्षेप के चलते अभी फिलहाल मामला टल गया है इन केंद्रीय मंत्री महोदय के चिकित्सा क्षेत्र से जुडे एक निजी व्यवसाय को डीन महोदय सेटल कर रहे है इसलिए एक्सटेंशन की कृपा उन पर गई है।
डीन की रास्ते पर ऐनेस्थिसिया के एक ऐसोसिएट प्रोफेसर
इस खबर से ‘’ लिंक ‘’ एक और मामले का जिक्र करना यहां जरूरी है कि ग्वालियर अंचल के इसी सरकारी मेडीकल कॉलेज में एनेस्थेसिया विभाग के ऐसोसिएट प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे डॉक्टर साहब पिछले कुछ दिनों से बीमारी का बहाना कर छुट्टी पर गायब है लेकिन इस निजी अस्पताल में बाकायदा अपनी सेवाएं दे रहे है। यहां उनकी हाजिरी रोज लग रही है। ये डॉक्टर साहब भी डीन की तरह ही चतुर है इस अस्पताल में उनकी डॉक्टर पत्नी डायरेक्टर का पद संभाल रही है। लेकिन मैनेंजमेंट डॉक्टर साहब ही देख रहे है। वैसे भी इन ऐसोसिएट प्रोफेसर साहब को पता है कि का कोई क्या बिगाड लेगा, जब डीन ही उन्हे रास्ता दिखा रहे है। वैसे भी डीन और ऐसोसिएट प्रोफेसर का हित एक ही निजी अस्पताल से जुडा है तो अंडरस्टेंडिंग स्वाभाविक है
ओपन टू ऑल है पूरी कहानी
ऐसा भी नही है कि ये पूरी कहानी दबी छिपी हो…मेडीकल कॉलेज हो…या उससे संबद्ध अस्पताल…या फिर स्वास्थ्य विभाग….सभी जगहों के डॉक्टर्स और प्रशासनिक पद संभाल रहे लोगों को इस बारे में पूरी जानकारी है….यहां तक कि निजी प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर्स से लेकर मरीजों तक को भी इसके बारे में पता है…साहब के अस्पताल में बडे अधिकारियों से लेकर, नेता और राजनीतिक रसूख रखने वाले कारोबारी इलाज कराने पहुंचते है ऐसे में अगर कार्यवाही करने के लिए सक्षम अधिकारी इससे अनभिज्ञ बनें..या फिर जानकारी न होने की बात करें….तो इससे बडी विडंबना और क्या हो सकती है।
अब सवाल…….किसी भी मेडीकल कॉलेज के डीन का पद उस मेडीकल कॉलेज की गरिमा का ख्याल रखने वाला पद है…जिम्मेदारी का पद है…बेहतर प्रशासनिक क्षमता के प्रदर्शन का पद है….सबसे बडी बात ये है कि वो दूसरे डॉक्टर्स और मेडीकल स्टूडेंटस के सामने मिसाल पेश करने वाला पद है….लेकिन जब इस पद को संभालने वाला ही नियमों से खेलेगा, तो वो क्या उदाहरण पेश कर पाएगा। डीन के अधिकारों की आड में अपना निजी हित साधेगा, तो उससे किसी सरकारी मेडीकल कॉलेज को आइडियल बनाने की दिशा में योगदान देने की क्या उम्मीद की जा सकती है। वो भी तब जब प्रदेश में सरकारी मेडीकल कॉलेजों की हालत बहुत ज्यादा अच्छी न हो..
कम कहा है ज्यादा समझिएगा….जय हो…….