हवा हुआ महापौर का दमखम, शहर की न सूरत बदली न सीरत….नए कमिश्नर अभी इंतजार में है !

(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)

ग्वालियर01जून2023। ग्वालियर नगर निगम की कमान जनता ने 57 साल बाद भाजपा से लेकर कांग्रेस को सौंपी थी और महापौर पद के लिए कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार की धर्मपत्नी शोभा सिकरवार पर भरोसा दिखाया था, उम्मीद की जा रही थी कि दल बदलने से निगम की सूरत और सीरत बदलेगी। उम्मीद इसलिए भी थी कि शोभा सिकरवार और उनके पति विधायक सतीश सिकरवार दोनों ही लंबे समय तक पार्षद रहे है तो निगम के तौर तरीकों, अधिकारियों की कार्यशैली और समस्याओं से निपटने का अनुभव भी उन्हे है जिसका लाभ ग्वालियर को मिलेगा। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही नजर आ रहा है। डायनामिक महापौर के तौर पर शोभा सिकरवार की चर्चा चुने जाने के कुछ समय तक तो रही, लेकिन काफी समय से उनकी कार्यशैली भी सुस्त नजर आ रही है।

दरअसल ग्वालियर में निगम की कमान बदलने का काफी हद तक श्रेय कांग्रेस की तरफ से विधायक सतीश सिकरवार के मैनेजमेंट और भाजपा की एंटीइनक्मबेंसी को जाता है लेकिन जिस उर्जा से सतीश ने भाजपा को निगम की सत्ता से बाहर किया, उस उर्जा और अनुभव का लाभ शोभा सिकरवार महापौर होने के नाते ग्वालियर शहर को दिला पाने में नाकाम साबित हो रही है।  

जो हाल शहर का बीजेपी शासित नगर निगम मे था वहीं अब कांग्रेस शासित निगम में है स्वच्छ सर्वेक्षण में ग्वालियर की रैंकिग गिरी है तो साफ सफाई को लेकर अब भी ग्वालियर की दम फूला हुआ है स्वच्छता को लेकर पैसा पानी की तरह बहा, लेकिन सफाई किसी कस्बे के जैसी ही हो पाई है। आउटसोर्स घोटाले का शोर थम चुका है इसमें जिम्मेदारी किसी की तय नही हो पाई। स्ट्रीट लाईट, आवारा जानवर, साफ पेयजल, गड्ढों में सडकें जैसी सामान्य सुविधाओं से ग्वालियर शहर की जनता अभी भी महरूम बनी हुई है।

हांलाकि एक समस्या ग्वालियर नगर निगम में लंबे समय से जमे अफसरों की वजह से भी है जो अपनी गोटी बिठाकर जमे हुए है इसके चलते भी विकास अवरूद्ध होता है शासन में तबादले की व्यवस्था भी इसी वजह से रखी गई है कि अधिकारी मठाधीश न बन जाएं, लेकिन ग्वालियर नगर निगम में मठाधीशों की कमी नही है ऐसे में ऐसे मठाधीशों से पुराने परिचय और संबंधों के चलते ही कांग्रेस और भाजपा किसी भी दल के महापौर की तरफ से सख्ती नही हो पाती।

ग्वालियर नगर निगम को लंबे समय बाद सीधी भर्ती के आईएएस हर्ष सिंह कमिश्नर के तौर पर मिले है वो ग्वालियर पहली बार पोस्टिंग पर आए है ऐसे में वो निगम के अधिकारियों से बिना राग द्वेष के शहर के विकास के लिए सख्ती से काम ले सकते है लेकिन फिलहाल वो स्थिति भी नजर नही आ रही है। उम्मीद है कि कमिश्नर साहब ने अब तक शहर की आबोहवा, भौगोलिक स्थिति, अधीनस्थों की पहुंच रसूख, कार्यशैली और राजनीतिक सरगर्मी का भी तसल्ली से जायजा ले लिया होगा। अब इंतजार के शहर के विकास के लिए प्लान और अमल का हो रहा है ये इंतजार कितना लंबा होगा, ये भी शहर की जनता देख रही है। चर्चा ये भी है साहब विधानसभा चुनावों की उठापटक के नतीजों के इँतजार में है।

खैर बात महापौर की हो रही थी तो अब नई निगम को बने एक साल पूरा होने जा रहा है लेकिन महापौर जिस दमखम के साथ चुनाव में प्रोजेक्ट हुई थी वो दमखम अब उनकी कार्यशैली में नजर नही आ रहा है। कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव है ऐसे में राजनीतिक तौर पर ही सही एक और मौका कांग्रेस शासित निगम के पास कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए है चुनाव तक ही सही ग्वालियर को इसका फायदा तो मिलेगा।

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