निगम, मंडल, प्राधिकरणों में नियुक्ति को लेकर सरकार को सांप सूंघा

(जितेन्द्र पाठक, ग्वालियर)

कांग्रेस को सरकार से बेदखल कर दोबारा सत्ता में आए भाजपा सरकार अपने 20 महीने पूरे कर चुकी है। इन 20 महीनों में शिवराज सरकार निगम, मंडल, प्राधिकरणों में नियुक्तियों को छोडकर सारे काम निपटा रही है। कोरोनो के संकट से निपटने का मामला हो या उपचुनाव सफलतापूर्वक कराने का, आईपीएस-आईएस ट्रांसफर पोसिटंग की बात हो या फिर पुलिस कमिशनर सिस्टम लागू करने जैसे कई महत्वपूर्ण फैसले सरकार ले चुकी है और ले भी रही है।

लेकिन पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं या पुराने वरिष्ठ नेताओं को निगम, मंडल, प्राधिकरणों में नियुक्ति के मसले पर शिवराज सरकार को सांप सूंघ गया है। इस बारे में सत्ता और संगठन स्तर पर भी कोई चर्चा लंबे समय से नही हो रही है। बीच का एक लंबा समय केवल इस बात को लेकर टाला गया, कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही आलाकमान द्वारा बदला जा सकता है। लेकिन वो समय और संभावनाएँ भी खारिज हो गई। उसके बाबजूद अब तक निगम, मंडलों और प्राधिकरणों में नियुक्तियों  को लेकर सरकार में गंभीरता नजर नही आ रही है।

फिलहाल पंचायुत चुनाव का बहाना

आगामी 2-3 माह में प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संभावित है जिसका तैयारी निर्वाचन आयोग ने शुरू कर दी है चुनावों के लिए रिटर्निंग और सहायक रिटर्निंग आफीसर तैनात किए जा रहे है। जल्द ही आदर्श आचार संहिता भी लग जाएगी, जिसके बाद निगम-मंडलों की नियुक्ति फिर टल जाएगी। सूत्र बताते है कि एक तो निगम-मंडलों में नियुक्ति को लेकर सरकार में कोई सरगर्मी भी नही है वहीं त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में रूठने मनाने से बचने के लिए भी ये मामला ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है।

नियुक्ति के दावेदारों का उत्साह भी ठंडा पडा

2 महीने बाद शिवराज सरकार को दो साल पूरे हो जाएंगे, 2023 मध्य के बाद मध्यप्रदेश में चुनाव संभावित है। ऐसे में अब सरकार का लगभग डेढ साल का कार्यकाल ही बचा है। इसमें अगर कुछ समय प्लस-माइनस करें और सरकार अगर आज नियुक्तियां कर भी दे, तो महज एक सवा साल का वक्त ही नियुक्ति पाने वालों को मिलेगा। जाहिर सी बात है एक सवा साल के लिए नियुक्त होने के बजाए न बनना ही ज्यादा अच्छा है यही सोचकर अब ज्यादातर दावेदारों का उत्साह ठंडा पड गया है।

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