
ग्वालियर 21 दिसम्बर 2022/ प्रेम, विरह व श्रृंगार से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोड़ती है। संगीत सरहदों में नहीं बंधता। संगीत का संदेश भी शास्वत है और वह है प्रेम। इस साल के विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधकों और सुदूर अफ्रीकन देश जिम्बाबे से आए संगीत कला साधकों ने अपने गायन-वादन से यही संदेश दिया। पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों का गुणीय रसिकों ने बुधवार की सुबह आयोजित हुई संगीत सभा में जीभरकर आनंद उठाया।
पारंपरिक ढंग से ध्रुपद गायन के साथ हुई सभा की शुरुआत
विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में बुधवार की प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ स्थानीय तानसेन संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन के साथ हुई। राग ” जौनपुरी” और ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे ” नाद सुघर घर बसायो”। पखावज पर श्री जगत नारायण ने संगत की।
गान महृषि तानसेन के आंगन में विश्व संगीत की आहुति
दिसंबर माह की सुबह की सर्द बेला में जिम्बाबे के ब्लेसिंग चिमंगा बैंड के कलाकारों ने जब अलावा मारींबा, सिंथेसाइजर , गिटार , सैक्सोफोन , ड्रम और मरीबा नामक वाद्य यंत्रों से शास्त्रीय संगीत से साम्य स्थापित कर मीठी-मीठी विशुद्ध अफ्रीकन धुनें निकालीं तो एक बारगी ऐसा लगा मानो गान महृषि तानसेन के आंगन में हो रहे संगीत के महाकुंभ में विश्व संगीत की आहुतियाँ हो रहीं हैं। इस बैंड ने अफ्रीका की सांस्कृतिक व मौलिक धुनों को जब ऊर्जावान होकर तेज रिदम के साथ प्रस्तुत किया तो युवा रसिक श्रोताओं में जोश भर गया। वहीं प्रकृति से जुड़े और निखरे अफ्रीकन संगीत ने गुणीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया।
बैंड के मुख्य कलाकार चिमांगा हैं, जो अलावा मारींबा नामक अफ्रीकन वाद्य यंत्र बजाते हैं। तान समारोह में हुई इस बैंड की प्रस्तुति में सिंथेसाइजर व मबीरा पर अलीशा , गिटार पर जोलास बास और तुलानी कुवानी ने सैक्सोफोन पर संगत की।ड्रम व अन्य ताल वाद्यों पर ब्लेसिंग मापरुत्सा ने प्रोत्साहन दिया।

पं सुखदेव चतुर्वेदी ने अपनी गायकी से भरा गागर में सागर
तानसेन समारोह में मुंबई से आये पण्डित सुखदेव चतुर्वेदी के राग माधुर्य ने सुधीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया। उन्होंने अल्प समय में तीन अलग- अलग रागों में बंदिशें पेश कर गागर में सागर भर दिया। पण्डित सुखदेव ने तानसेन के सुपुत्र विलासखान द्वारा सृजित राग “विलासखानी तोड़ी” में एक बंदिश पेश की। ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “चंद बदनी मृग नयनी हंस गमनी…”। दरभंगा सांगीतिक घराने की ध्रुपद गायकी में पारंगत पण्डित सुखदेव चतुर्वेदी देश के शीर्ष शास्त्रीय गायकों में शुमार हैं। उन्होंने अपने गायन में कठिन लयकारियों व तिहाहियों को स्पष्ट उच्चारण के साथ प्रस्तुत कर यह साबित किया कि घरानेदार गायिकी कैसी होती है।पण्डित चतुर्वेदी ने अपने गायन को विस्तार देकर राग” देसी” और धमार ताल में ” हूँ तो तुम..” का गायन किया। उन्होंने राग ” शुद्ध सारंग” और सूल ताल में “हर हर महादेव…” बंदिश गाकर अपने गायन को विराम दिया।
उनके गायन में सारंगी पर उस्ताद मुन्ने खाँ, पखावज पर पं मृणाल उपाध्याय ने मनमोहक संगत की। बुधवार की प्रातःकालीन सभा में दूसरे कलाकार के रूप में पं सुखदेव चतुर्वेदी की प्रस्तुति हुई।
सुरों का रमणीय गुलदस्ता सौंप गए अभिषेक बोरकर..
मैहर सेनिया घराने के युवा सरोदिया अभिषेक बोरकर की अंगुलियाँ की थिरकन से सरोद से मधुर सुर झरे तो रसिकों को ऐसा आभास हुआ कि कोई उन्हें सुंदर -सुंदर फूलों का रमणीय गुलदस्ता सौंप रहा है। तानसेन समारोह में पुणे से आए इस संवेदनशील सरोद वादक की प्रस्तुति में दाहिने और बाएं हाथ के बीच वांछित संतुलन से सुरों की वर्षा देखते व सुनते ही बन रही थी। अभिषेक बोरकर ने मधुर राग ” चारुकेशी” में परिचयात्मक अलाप के बाद तीन ताल में विलंबित व द्रुत गत बजाकर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जिस सहज गति से उन्होंने मधुर राग का वर्णन किया, उससे जाहिर हुआ कि उनकी उचित तालीम कितनी उच्चकोटि की है।
पुणे के युवा हिन्दुस्तानी सरोद वादक श्री अभिषेक बोरकर ने अपने पिता पण्डित शेखर बोरकर जी से सरोद पर कठोर और गहन प्रशिक्षण लिया है। अभिषेक बोरकर के सरोद वादन में तबले पर श्री अंशुल प्रताप सिंह ने आश्चर्यजनक राग गावटी की।
“का करूं सजनी आए न बालम…”
तानसेन समारोह में पुणे से आए सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक श्री आनंद भाटे ने जब अपनी दानेदार सुरीली आवाज में बड़े गुलाम अली खां साहब की प्रसिद्ध ठुमरी “का करूं सजनी आए न बालम..” गाकर सुनाई तो पूरे माहौल में रंजकता छा गई। मूर्धन्य संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के शिष्य आनंद भाटे का खयाल गायन रसिकों को खूब भाया। उनकी गायकी में चैनदारी ख़ासा असर छोड़ रही थी । उन्होंने राग “वृंदावनी सारंग” से गायन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। झप ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे “तुम रब तुम साहिब तुम ही करतार…”। इसी क्रम में तीन ताल में पेश की गई द्रुत बंदिश के बोल थे “जाऊं मैं तोपे बलिहारी”। दोनों ही बंदिशों को उन्होंने घरानेदार अंदाज में पेश किया। रागदारी की शुद्धता को बरकरार रखकर उन्होंने राग खिला दिए। विविधता पूर्ण तानों की अदायगी भी लाजवाब रही। द्रुत बंदिश के गायन में भी आपने कई लयकारियां दिखाईं।
उनके साथ हारमोनियम पर श्री रवीन्द्र किल्लेदार और तबले पर श्री हितेन्द्र दीक्षित ने बेहतरीन संगत की।
राग ” देशी” में वायोलिन वादन सुन झूमे रसिक
तानसेन समारोह में बुधवार की प्रातःकालीन सभा का समापन भोपाल के श्री प्रवीण शेवलीकर के वायोलिन वादन से हुआ। प्रवीण जी ने राग “देसी” में अपने वादन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो रचनाएं पेश की। विलंबित रचना एक ताल में और द्रुत रचना तीन ताल में निबद्ध थी। दोनों ही रचनाओं को बजाने में उन्होंने अपने कौशल के कई रंग दिखाए। उनके वायोलिन से झर रहीं रसभीनीं तानें सुन रसिक झूम उठे। रागदारी की बारीकियों से परिपूर्ण प्रवीण जी का वादन गायकी अंग का था। उन्होंने अपने वादन का समापन राग “भैरवी” में दादरा की धुन निकालकर किया। उनके साथ तबले पर श्री मिथिलेश झा ने संगत की। वायोलिन पर प्रवीण जी की सुपुत्री सुश्री चैताली शेवलीकर ने अच्छा साथ दिया।