ग्वालियर 22 दिसम्बर 2022/ मुरैना जिले में स्थित बटेश्वर में छठी शताब्दी के अनेक शिव मंदिर हैं। जो कालांतर में ध्वस्त हो गए थे, पुरातत्व विभाग इन मंदिरों का पुनर्निर्माण कर रहा है। गुरूवार की सुबह जब यहां रागदारी सजी तो ये मंदिर मानो जीवंत हो उठे। बटेश्वर में हुई संगीत सभा का आगाज इंदौर के श्री विवेक नवले के एकल तबला वादन से हुआ। विवेकजी ने तीन ताल में अपना वादन पेश किया। पेशकार से शुरू करके उन्होंने पंजाब के कायदे, बंदिशें कुछ परनें और रेला बजाया। उनके साथ हारमोनियम पर श्री दीपक खसरावल ने लहरा दिया।
दूसरी प्रस्तुति ग्वालियर घराने की वरिष्ठ गायिका श्रीमती साधना गोरे की थी। साधना जी हाल ही में आकाश वाणी से रिटायर हुई हैं। वे देश के अनेक संगीत समारोहों में अपनी सफल प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। यहां उन्होंने राग गुनकली से अपने गायन की शुरुआत की। एकताल में विलंबित बंदिश के बोल थे -” आज राधे तोरे” जबकि तीनताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे ” अब न जगाओ प्यारे” । दोनों ही बंदिशों को आपने बड़े रंजक ढंग से गाया। विलम्बित बंदिश को आपने राग का विस्तार किया तो एक एक सुर खिल उठा। इसके बाद विविधता पूर्ण तानों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। आपने मिश्र किरवानी में दादरा की प्रस्तुति दी बंदिश के बोल थे “सुन्दर साड़ी मोरी”। श्रृंगार रस में डूबे इस दादरे को आपने बड़े ही रंजक अंदाज में पेश किया। गायन का समापन आपने मीराबाई के भजन “भज ले रे मन गोपाल” से किया। आपके साथ हारमोनियम पर श्री महेशदत्त पांडेय ने सांगत की जबकि तबले पर साथ दिया श्री मनोज पाटीदार ने।
सभा का समापन दिल्ली से आये श्री प्रभात कुमार के सरोद वादन से हुआ। प्रख्यात सरोद वादिका विदुषी शरण रानी के पटु शिष्य प्रभात कुमार ने अपना वादन राग बसंत मुख़ारी में पेश किया। उन्होंने इस राग में दो गतें बजाईं, दोनों ही गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। रागदारी से भरा वादन आपकी खासियत है। उसमे चैनदारी है और माधुर्य भी है। उन्होंने अपने वादन का समापन शिवरंजनी में एक धुन से किया। उनके साथ तबले पर श्री निशांत शर्मा ने सांगत की।