महल और सामंतवाद की खिलाफत से हिंदूत्व के ट्रेक पर लौटते पवैया !

(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)

ग्वालियर। 07अप्रैल2023। बीजेपी के फायरब्रांड नेताओं में शुमार रहे पूर्व सांसद एंव पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया एक बार फिर अपने कट्टर हिंदुत्व के उस ट्रेक पर वापस लौटते दिख रहे है जिससे उन्होने शुरूआत की थी। बजंरगदल के सुप्रीमो रहे पवैया ने बीजेपी की राजनीति में चुनावी जोर आजमाइश के दौरान ग्वालियर से हुंकार भरने के लिए सामंतशाही की खिलाफत को अपना प्रमुख हथियार बनाया।

सामंतशाही और महलविरोधी नेता के रूप में पवैया खूब पसंद किए गए। पवैया के भाषण सामंतशाही के विरूद्ध पर्याय बन गए थे ग्वालियर से पहला चुनाव भी पवैया ने इसी शैली में लडा और उसी चुनाव से पवैया की राजनीति का सूर्य उदय हुआ, जिसकी चमक स्व. माधवराव सिंधिया ने भी महसूस की और ग्वालियर छोडकर अगला चुनाव गुना से लडा। इस दौर में पवैया ने समय की नब्ज को पहचानते हुए हिंदुत्व से शिफ्ट होते हुए सामंतवादी पंरपरा का विरोध ही अपनी राजनीत का आधार बना लिया, जो लगातार चला भी। ग्वालियर बीजेपी में पवैया इकलौते ऐसे नेता रहे, जो सिंधिया परिवार और सामंतवाद के खिलाफ खुलकर बोलते थे।

अब समय बदला और सिंधिया की बीजेपी में ही एंट्री हो गई। और यही नियम है राजनीति का, यदि विरोधी अपने ही दल में आ जाए तो या तो दल बदल लो और फिर अपनी शैली। पवैया ने शैली में बदलाव किया है हांलाकि कुछ रंज-तंज समय समय पर पवैया का निकलता रहता है लेकिन अब कुछ समय से अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि की तरफ पवैया लौटते दिख रहे है पिछल कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर उनके ट्विट भी इसी तरफ इशारा करते है कुछ महीने पहले गौवंश के वध के आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर पवैया ने ट्विट किया था जिसके बाद ग्वालियर पुलिस प्रशासन तत्काल हरकत में आया था और हाल ही में हनुमान जंयती को लेकर तल्ख भाषा में किया गया उनका ट्विट भी यही बताता है

पवैया का टि्वट

दरअसल सिंधिया आलाकमान की पसंद है तो ऐसे या वैसे सभी नेताओं को भी उन्हे अपनी पसंद बनाना पडेगा, भले ही मजबूरी हो, लेकिन अपना वजूद बनाए रखने और सक्रिय चुनावी राजनीति में दखल के लिए भी कोई न कोई रास्ता चुनना ही पडेगा। वैसे भी इसी साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव है वहीं सिंधिया के साथ बीजेपी में आए कई नेता मूल भाजपाईयों की चुनावी सियासत में बैरियर लगा चुके है पवैया के साथ भी कुछ ऐसा ही मसला है

हांलाकि बीते कुछ दिनों में सिंधिया-पवैया की मुलाकातें भी सार्वजनिक हुई है हर मुलाकात में सिंधिया ही पवैया के घर पहुंचे है इन मुलाकातों कीवजह से दिल मिलने की भी चर्चा अक्सर कुछ लोग करते है लेकिन राजनीति में ये जुमला भी बडा चला करता है कि दिल मिले न मिले, हाथ मिलते रहना चाहिए।

बहरहाल इस समय बीजेपी में हिंदुत्व शैली ट्रेंड कर रही है पडोसी राज्य यूपी सबसे माकूल उदाहरण है जहां सीएम योगी केवल और केवल कट्टर हिंदूत्व से छाए हुए है वैसे भी अब पवैया इस शैली के माहिर खिलाडी है तो दोबारा तैयारी इसी की नजर आ रही है.

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