जर्मनी से बेटे का शव ग्वालियर लाने बिलख रहे बूढ़े मां-बाप, बहू और 7 साल की नातिन भी जर्मनी में फंसे

ग्वालियर17अगस्त2023। ग्वालियर में लाचार और बेबस माता पिता ने अपने बेटे की डेड बॉडी भारत लाने के लिए केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार लगाई है। दरअसल ग्वालियर के ललितपुर कॉलोनी में रहने वाले बाबू सिंह राठौर और उनकी पत्नी प्रभादेवी राठौर का घर में रो-रो कर बुरा हाल है। उनका होनहार बेटा प्रणित राठौर जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। वह जर्मनी में म्यूनिख शहर में (ESSITI) कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर के पद पर पदस्थ था।लेकिन 14 अगस्त को उसकी अचानक ही हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनका बेटा धार्मिक प्रवृत्ति का था, बेटे और बहू ने श्रावण मास की सोमवार का व्रत रखा था।

उसने रात के वक्त अपनी पत्नी और 7 साल की बच्ची के साथ खाना खाया और खाना खाने के बाद वह नींद में सो गया। लेकिन अगली सुबह जब उसकी पत्नी ने उसे उठाने की कोशिश की तो वह उठ ही नहीं सका। इसके बाद तत्काल चिकित्सकों को बुलाया गया। उसे अस्पताल भी भेजा गया, जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

पिता बाबू सिंह राठौर और मां प्रभादेवी अपने बच्चे का अंतिम संस्कार ग्वालियर में करना चाहते हैं, वह आखिरी बार अपने बेटे की सूरत देखना चाहते हैं। लेकिन डेड बॉडी आने में बहुत खर्चा आ रहा है। जर्मनी से भारत डेड बॉडी लाने में तकरीबन ₹1000000 का खर्चा है। ऐसे में उन्होंने मदद के लिए ग्वालियर के महाराज कहे जाने वाले केंद्रीय नागरिक उद्यान मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और विदेश मंत्री एस जयशंकर के अलावा केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से भी गुहार लगाई है। लेकिन अब तक उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई है।

उनका कहना है कि वह बुजुर्ग हो चुके हैं। चलने फिरने में भी लाचार हैं, उनके बेटे की डेड बॉडी जर्मनी के म्यूनिख शहर के अस्पताल में पड़ी हुई है। बहू की भी हालत खराब है। बेटे की मौत के बाद जिस किराए के मकान में वह रह रहे थे। उसके मकान मालिक ने भी उनके बेटे की मौत की खबर सुनकर तत्काल मकान खाली करने का प्रेशर बनाया है। उनके बेटे की एक 7 साल की मासूम बच्ची है, जो वहां पर अपनी मां के साथ अकेली है। उन्होंने कर्ज करके एक एजेंसी से संपर्क भी साधा है। ताकि उनके बेटे की डेड बॉडी वतन वापस आ सके और उसका रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार हो सके।

उनका बेटा प्रणीत जिस कंपनी में काम करता है। इसकी ब्रांच पहले भारत में मुंबई में थी। लेकिन उन्होंने यहां से अपना ऑफिस बंद कर दिया था। प्रणीत के काम को देखते हुए उसे जर्मनी आने का ऑफर दिया था। कंपनी के बुलावे पर ही वह अपने परिवार सहित जर्मनी में काम करने के लिए गया था। लेकिन कंपनी ने प्रणीत की मौत के बाद हाथ खड़े कर दिए। कंपनी का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा है ।इस बात से भी परिवारजन बेहद दुखी हैं। बुजुर्ग माता-पिता को उम्मीद है कि केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान उनके बेटे की डेड बॉडी को भारत लाने में उनकी मदद करेंगे। लेकिन फिलहाल उन्हें अब तक कोई मदद नहीं मिल सकी है। माता-पिता रो-रो कर मदद की गुहार लगा रहे हैं।

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