(जितेंद्र पाठक)
ग्वालियर। दो दिन पहले प्रदेश सरकार ने निगम-मंडलों की बहुप्रतिक्षित सूची जारी कर दी, जिसमें सरकार ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बीजेपी में आए उन समर्थकों का पुर्नस्थापन कर दिया, जो विधानसभा उपचुनाव में पटखनी खा चुके थे। ग्वालियर की बात करें..तो मुन्नालाल गोयल और इमरती देवी, महाराज की कृपा से शिवराज सरकार के अंग बन गए है। और ओहदा भी केबिनेट स्तर का मिला है।
अब ग्वालियर मे मेला प्राधिकरण, ग्वालियर विकास प्राधिकरण (जीडीए) और स्पेशल एरिया डवलेपमेंट अथॉरिटी (साडा) की कुर्सियां खाली है। जिन पर ताजपोशी होनी है। ऐसे में मूल भाजपाईयों को उम्मीद है कि सिंधिया समर्थकों को ‘प्रसाद’ मिलने के बाद कम के कम ये पद तो उनके ही खाते में आने चाहिए….लेकिन इसमें भी पेंच ये है कि सिंधिया समर्थक खेमे से डॉ. प्रवीण अग्रवाल मेला प्राधिकरण और रमेश अग्रवाल जीडीए चेयरमेन की कुर्सी के दावेदार बताए जा रहे है। उधर उर्जा मंत्री प्रधुम्न सिंह भी अपने बडे भाई देवेंद्र सिंह के लिए गोटियां बिठाने में लगे है।
ऐसे में ग्वालियर से भाजपा झंडा थामकर राजनीति की शुरूआत करने वाले मूल भाजपाई केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह अपने ही गृह जिले में सिंधिया के आगमन के बाद कुछ कमजोर हुए है ऐसी चर्चा राजनीतिक हलकों में लगातार चल रही है। पार्टी के ही लोगों में चर्चा है कि बीजेपी जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी की नियुक्ति भी ग्वालियर सासंद शेजवलकर के कोटे से हुई। उस समय भी ये चर्चा ये थी कि नरेंद्र सिंह की नाराजगी के चलते कमल को हटाया जा सकता है लेकिन कुछ भी नही हुआ। लिहाजा अब नरेंद्र सिंह भी चाहते है कि मेला प्राधिकरण, जीडीए और साडा में अध्यक्षों की नियुक्ति उनकी सहमति से हो। इन नियुक्तियों से भी नरेंद्र सिंह का पलडा एक बार फिर भारी होता दिखाई दे सकता है। हांलाकि लगता नही है कि मामा उनकी बात को अब तवज्जो देंगे, क्योंकि मामा अभी सिंधिया जी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगे है। मामा की इस कदमताल से अंचल के अन्य भाजपा नेता कमजोर पडने लगे है।
हांलाकि निगम मंडलों में अध्यक्ष उपाध्यक्ष की कुर्सी संभालने वालों का कार्यकाल ज्यादा लंबा नही है। लेकिन राजनीतिक समीरणों के हिसाब से उनके आकाओं को हैसियत तय जरूर हुई है। ग्वालियर के संदर्भ में भी मेला प्राधिकरण, जीडीए और साडा में नियुक्ति भी यही कुछ तय करेगी।