
(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)
ग्वालियर19अप्रैल2023। एमपी गजब ही है…जहां सारे नियम कायदे पूरे करने वाले पात्र भटकते फिरते है तो अपात्र कृपापात्र बनकर मजे करते है..बस सरकार में केवल आपकी पकड़ और रसूख होना चाहिए…बस फिर नियम कायदे कानून धागे की तरह टूटते जाते है। प्रदेश की बीजेपी सरकार में ऐसा ही हुआ है…हांलाकि इसकी शिकायत पिछले साल ही लोकायुक्त संगठन में की गई है जिसकी जांच अभी जारी है।
दरअसल प्रदेश के प्रतिष्ठित ग्वालियर के जीआर मेडीकल कॉलेज में एक ऐसोसिएट प्रोफेसर को स्वास्थ्य विभाग से चिकित्सा शिक्षा विभाग में लाने के लिए एक ओर जहां नियमों में ढील दी गई, और तो और सीधी भर्ती के असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर प्रमोशन के जरिए नियुक्ति तक दे दी गई है इसके लिए सरकार ने सारे नियम कायदों को ताक पर रख दिया गया। क्योंकि लाभ उठाने वाले डॉक्साब भी कट्टर संघधारी है। यानि कहा ये कहा जाए कि उनकी नियुक्ति का पैमाना केवल संघधारी होना ही था तो अतिश्योक्ति नही होगी।
मालवा अंचल के शिकायतकर्ता ने यहीं बिंदु लोकायुक्त को की शिकायत में उठाया है। लोकायुक्त में की गई शिकायत में कहा गया है संबंधित डॉक्टर मूलतः लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में सहायक शल्य चिकित्सक ( मेडीकल आफीसर) केपद पर पदस्थ थे जहां से वो एक बार चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति पर पहुंचे, तो उन्होने तिकड़म लगाकर वापस मूल विभाग में जाने के सारे दरवाजों को बंद करने व्यवस्था कर ली। उनका संविलियन रजिस्ट्रार मेडीसिन के पद पर पूर्व में नियमानुसार प्रावधान न होने के बाबजूद किया गया है एवं उसी व्यक्ति विशेष को नियमों के विपरीत असिस्टेंट प्रोफेसर(मेडीसिन) के पद पर नियमों में प्रावधान न होने के बावजूद पदोन्नति दे दी गई है यह कृत्य व्यक्ति विशेष को बार बार लाभ पहुंचाने का कृत्य है एवं संविधान में दिए गए अवसर की समानता के विपरीत है
शिकायतकर्ता ने अपनी बात को पुष्ट करते हुए लोकायुक्त को लिखी शिकायत में कहा है कि नियमों में शिथिलीकरण के उपरांत आज दिनांक तक ‘’संघधारी ऐसोसिएट प्रोफेसर के अतिरिक्त’’ प्रदेश के चिकित्सा महाविधालयों में रजिस्ट्रार से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर (बिना इंटरव्यू के)किसी अन्य चिकित्सक को पदस्थ नही किया गया है जिससे स्पष्ट है कि उक्त प्रक्रिया व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए थी एंव संबंधित को विशेष प्रकरण मानकर पदोन्नति दिए जाने का कोई वैध कारण भी उपलब्ध नही है।
खास बात ये भी है कि नियमों के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर का पद सीधी भर्ती का होने की वजह से इंटरव्यू एक अनिवार्य प्रक्रिया है असिस्टेंट प्रोफेसर बनने वाले हर डॉक्टर को इससे गुजरना होता है लेकिन संघधारी साहब ऐसे इकलौते डॉक्साब है जिन्हे प्रमोशन के जरिए ये पद थाली में मिला, अब मिला सो ठीक, लेकिन आंखों में धूल झोंकने के लिए कम से कम एक दिखावटी इंटरव्यू ही सरकार करवा देती, तो शायद कुछ तसल्ली शिकायतकर्ता को भी हो जाती, लेकिन ये साहब का पावर ही है कि एक बार जो कमिटमेंट कर दिया तो फिर मैं अपने आप की भी नही सुनता……
लोकायुक्त की छन्नी में से बाहर आती कुछ चर्चाएं अगली बार के लिए उधार