मालेगांव विस्फोट कांग्रेस की घिनौनी साजिश-कैलाश विजयवर्गीय

महाराष्ट्र के मालेगांव बम विस्फोट की पूरी साजिश कांग्रेस या कहे कि मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की थी। मालेगांव विस्फोट हो या अजमेर दरगाह बम विस्फोट या फिर मुंबई में आतंकवादी हमला, तमाम खुलासों के बाद यह साबित होता है कि पाकिस्तान की शह पर देश में होने वाली आतंकवादी घटनाओं को भगवा आतंकवाद बनाना था। मुस्लिम आतंकवादियों का समर्थन करने और आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है, ऐसे तर्क देने वाले कांग्रेस के नेताओं ने हिन्दू धर्म को बदनाम करने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारियों को फंसाने की पूरी साजिश रची थी। मालेगांव बम विस्फोट मामले में सर संघचालक श्री मोहन भागवत और अजमेर दरगाह बम विस्फोट में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी श्री इंद्रेश कुमार को फंसाने की साजिश रची गई थी। मालेगांव विस्फोट में बनाए गए 220 गवाहों में से 15 ने खुलासा कर दिया है कि एटीएस ने संघ पदाधिकारियों का नाम लेने के लिए यातनाएं दी थी। सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद यातनाएं दी गईं।

मालेगांव विस्फोट कांड के एक गवाह ने विशेष एनआईए कोर्ट में खुलासा किया है कि महाराष्ट्र एटीएस के पूर्व अतिरिक्त आयुक्त परमबीर सिंह और एक अन्य अधिकारी राव ने योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चार नेताओं इंद्रेश कुमार, स्वामी असीमानंद, काका जी एवं देवधर जी का नाम लेने का दबाव बनाया था। एटीएस के अधिकारियों ने उसे कहना न मानने पर आरोपी बनाने की धमकी दी था। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव में एक मोटरसाइकिल में हुए विस्फोट में छह लोगों की मौत और 100 से ज्यादा घायल होने के मामले में महाराष्ट्र एटीएस की जांच को लेकर सवाल पर सवाल पैदा हो रहे हैं। विस्फोट करने वाले असली गुनाहगारों को छोड़कर एटीएस ने भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टीनेंट कर्नल पुरोहित, समीर कुलकर्णी, अजय राहिलकर, रमेश उपाध्याय, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी को आरोपी बनाया था। हत्या, हत्या के प्रयास सहित आतंकवाद की कई धाराओं के तहत इन पर मामले चल रहे हैं। गृह मंत्रालय ने 13 अप्रैल 2011 को यह मामला महाराष्ट्र एटीएस से लेकर एनआईए को सौंपा था। एनआईए की जांच में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पांच अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले। 13 मई 2016 को एनआईए ने ठाकुर और पांच अन्य के खिलाफ सभी आरोप वापस ले लिए थे। इसके बावजूद एनआईए की विशेष अदालत में मामले चल रहे हैं।

लगातार गवाहों के मुकरने के बाद कांग्रेस नेताओं की साजिशों की परत-दर-परत खुलती जा रही हैं। गवाहों के मुकरने से यह भी साबित हो रहा है कि यूपीए सरकार, कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी, तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद समेत तथाकथित सेक्युलर और मीडिया के एक वर्ग ने संघ के पदाधिकारियों को फंसाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। भगवा आतंकवाद की परिभाषा गढ़ने वाले कांग्रेस के नेताओं ने दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए पुलिस अधिकारी के बलिदान पर ही सवाल उठाए थे। मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने बाटला हाउस एनकाउंटर मामले में  आतंकवादी आरिज खान उर्फ जुनैद को दोषी करार देते हुए कहा था कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की शहादत का जिम्मेदार है। दिग्विजय सिंह ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताया था और सलमान खुर्शीद का दावा था कि एनकाउंटर में मारे गए लड़कों की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बाटला हाउस एनकाउंटर को बिल्कुल सही ठहराया था। मनमोहन सिंह, सोनिया, राहुल, प्रियंका, दिग्विजय, सलमान और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों की घिनौनी साजिश का लगातार पर्दाफाश होने के बाद देश की जनता के सामने सच सामने आ रहा है। देश की जनता द्वारा बार-बार ठुकराने से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिन्दू होने का दावा करते हैं और हताशा में हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री कर्मयोगी श्री नरेंद्र मोदी के गंगा स्नान पर आपत्ति करते हैं। देश की जनता के सामने श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह को फंसाने की साजिश की सच भी सामने आ गया है। ऐसी साजिशों से कांग्रेस के नेताओं की आपराधिक मनोवृति भी सामने आ गई है।                                             
नोट: लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और समय समय पर अपने विचारों को समाचार पत्रों में भी साझा करते हैं।

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