ग्वालियर में चर्चा गर्म…भाजपा आज डरी डरी सी क्यों है ?

बस से ग्वालियर से रवाना होते बीजेपी पार्षद और पार्षद पति

(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)

ग्वालियर2अगस्त2022। ग्वालियर नगर निगम के 57 साल के इतिहास में आज भाजपा डरी हुई लग रही है। डर की वजह है महापौर चुनाव का परिणाम…डर की वजह है अपने पार्षदों पर अविश्वास और डर की वजह है अपनी ही कार्यशैली की संभावित पलटवार…

ग्वालियर में भाजपा अपने सभी 34 पार्षदों को बसों में भरकर दिल्ली (ग्वालियर में दिल्ली बताया गया है लोकेशन बीजेपी के नेता ही तय करेंगे) ले गई है। अब ये पार्षद सभापति के चुनाव के लिए वोटिंग वाले दिन 5 अगस्त को सीधे परिषद ही लाए जाएंगें। राजनीतिक भाषा में अब इसे बाडाबंदी कहा जाता है। 57 साल से नगर निगम ग्वालियर पर एकछत्र राज कर रही भाजपा इस बार भयाक्रांत है। उसका भय जायज भी है क्योंकि दिल्ली से लेकर प्रदेश और प्रदेश से लेकर ग्वालियर तक भाजपा के किसी भी नेता ने नही सोचा था कि उनका ही पुराना नेता कांग्रेस में पहुंचकर महापौर चुनाव में उन्हे इस तरह पटखनी दे देगा। वो भी तब जब सीएम से लेकर केबिनेट मंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यसभा सांसद, संगठन के धुरंधर महापौर चुनाव में ग्वालियर को हिला दे रहे थे

अब सभापति चुनाव के रूप में दूसरे राउंड की तैयारी है लेकिन इस बार भाजपा दूध की जली है सो छाछ भी फूंक कर पी रही है उनके पार्षद भले ही कहते रहे, कि वो पार्टी के प्रति वफदार है लेकिन अब भरोसा नही, कब कौन चोट कर दे, लिहाजा बाडाबंदी की गई है। लेकिन जाहिर सूचना दी गई है कि वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात होनी है सत्र चालू है कि लिहाजा वो यहां नहीं आ पा रहे है लेकिन ये बात गले नही उतरती।

उधर कांग्रेस के पास एक पार्षद संख्या और बढ गई है जिसे मिलाकर अब कांग्रेस के खाते में 25 से बढकर कुल पार्षद 29 हो गए है उधर बीजेपी के खाते में उसके मूल 34 पार्षद ही है फिलवक्त तक एक भी निर्दलीय पार्षद बीजेपी के पाले में नही गया। अब जो है सो बचे रहें, इसी सोच के साथ ‘’अपने घरेलू आपरेशन लोटस’’ के तहत पार्षद दिल्ली भेजे गए है हांलाकि बीजेपी के कुछ नेता डेमेज कंट्रोल में मास्टर है लेकिन परेशानी इसलिए भी है क्योंकि नगर निगम में न तो दल बदल कानून लागू है और न ही क्रास वोटिंग पकड पाने की कोई ठोस प्रोसीजर है ऐसे में केवल साम, दाम, दंड, भेद ही अपने पार्षदों पर ठोंका जा सकता है।

बीजेपी प्रेशर में इसलिए भी है क्योंकि अगले साल ही विधानसभा चुनाव है ऐसे में महापौर के साथ ही सभापति पद भी हाथ से निकल गया, तो दिक्कत खडी होना स्वाभाविक है वहीं बीजेपी के पार्षद आधी सदी के बाद विपक्ष में बैठेंगे, तो उन्हे भी इसमें तालमेल बिठाने में परेशानी होगी।

हांलाकि दूसरे दलों में सेंधमारी में भी बीजेपी का कोई सानी नही है कई प्रदेशों के राजनीतिक समीकरण इसके गवाह है तो हाल ही में अपने ही प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी बीजेपी ने अपना बेहतरीन गेम खेला, लेकिन ग्वालियर नगर निगम में फिलहाल सीन बदला हुआ है कांग्रेस के ललितपुर कॉलेनी स्थित पावर सेंटर से परिणाम अप्रत्याशित आ सकते है ये बीजेपी  के नेता महसूस कर रहे है इसलिए कोई जोखिम नही उठा सकते है…………..इस वजह से शहर में आज चर्चा है कि बीजेपी डरी डरी सी क्यों है ?

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