
(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)
ग्वालियर की 15-ग्वालियर विधानसभा सीट इकलौती ऐसी सीट है जो आगामी विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण के समय बीजेपी में मामा-महाराज के लिए परेशानी का कारण बनेगी। ग्वालियर की ये ऐसी विधानसभा सीट है जहां से विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से चुनाव जीतने और हारने वाले दोनों ही अब बीजेपी में है। हां, ये बात अलग है कि जयभान सिंह पवैया मूल भाजपाई है और प्रधुम्न सिंह तोमर सिंधिया समर्थक भाजपाई। और अभी समय की मांग को देखते हुए प्रदेश में बीजेपी को दोबारा सरकार में लाने वाले महाराज और उनके समर्थकों की खूब चल भी रही है।
2019 में कांग्रेस सरकार गिराने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सभी समर्थक विधायकों और मंत्रियों को बीजेपी ने उपचुनाव में टिकट दिया था और राजनैतिक चश्मे के हिसाब से ये उस समय ठीक भी था और नतीजा ये रहा कि प्रदेश में अब बीजेपी की सरकार है।
15-ग्वालियर विधानसभा सीट, जो बीजेपी की तरफ से जयभान सिंह पवैया के लिए दो चुनावों से आरक्षित थी वो अब पूर्व कांग्रेसी और वर्तमान भाजपाई मंत्री प्रधुम्न सिंह के पाले में है कांग्रेस में रहकर बीजेपी के जयभान सिंह पवैया को हराकर और बीजेपी में रहकर कांग्रेसी उम्मीदवार सुनील शर्मा को चित्त करके प्रधुम्न सिंह अपनी क्षमता का परिचय दे ही चुके है इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नही है कि बीजेपी के तरफ से महाराज के आशीर्वाद से इस सीट से प्रधुम्न ही दोबारा ताल ठोंकेंगे। ऐसे में संघ में गहरी पैठ रखने वाले, पूर्व सांसद पूर्व मंत्री और मूल भाजपाई जयभान सिंह पवैया कहां से दावेदारी करेंगें। और करेंगे भी या नही, लेकिन अगर दादा ने 15-ग्वालियर से ही ताल ठोंकने का मन बना लिया, तो टकराव तय है।
प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग होगा, यहां सीधी टक्कर कांग्रेस और भाजपा की नही बल्कि कांग्रेस मिश्रित भाजपा की होगी, ऐसे में न केवल 15-ग्वालियर विधानसभा बल्कि प्रदेश की कई सीटों पर भाजपा के अँदर ही घमासान तय है। ग्वालियर की बात करें तो इस विधानसभा के अलावा कोई और सीट जयभान सिंह की पसंद नही लगती, क्योंकि पवैया ने अपना पहला विधानसभा चुनाव यहीं से लडा, यहीं से जीते भी, तो पराजय का मुंह भी यहीं देखा है। ग्वालियर की अन्य विधानसभा सीटों की बात करें तो ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल, दक्षिण से नारायण सिंह सहित आधा दर्जन उम्मीदवार, ग्रामीण से मदन कुशवाह, महेंद्र सिंह सहित अन्य जबकि भितरवार से बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर से लकर अनूप मिश्रा के नाम चर्चा में है ऐसे में अगर पवैया का जोर 15 ग्वालियर विधानसभा के अलावा कहीं और लगेगा, इसकी संभावना काफी कम लगती है
प्रखर वक्ता होने के साथ महल विरोधी राजनीति ने पवैया को बीजेपी का फायरब्रांड नेता बनाया, मगर अब माहौल और मसला अलग हो चुका है पवैया आक्रामक राजनीति करने के लिए जाने जाते है, लेकिन अब दादा के तेवर ठंडे है और ग्वालियर से लेकर प्रदेश बीजेपी की राजनीति में भी चुप्पी साधे हुए है ऐसे में अब पवैया की अगली भूमिका का इंतजार रहेगा…….जय श्री राम