ग्वालियर04अप्रैल2025।ग्वालियर के जीआर मेडीकल कॉलेज में पदस्थ चिकित्सा शिक्षकों के लिए शासकीय आवास अलॉट होने की प्रक्रिया कठिन और उसमें भी लंबी वेटिंग हैं लेकिन जिसका रसूख और जलवा होता है वो रिटायरमेंट के बाद भी बंगले पर कब्जा बनाए रखते हैं और किसी की मजाल नहीं कि कोई चूं तक नहीं कर पाए। और वो भी तब जब संबंधित डॉक्टर संघ से जुड़ा संघधारी हो।
ग्वालियर के जीआर मेडीकल कॉलेज में स्वास्थ्य विभाग से विधिविरूद्ध तरीके से प्रतिनियुक्ति पर आए एक संघधारी डॉक्टर ने न केवल नियमविरूद्ध तरीके से पूरी नौकरी की, बल्कि अब रिटायरमेंट के बाद भी संघ में अपने संबंधों और रसूख के चलते सरकारी आवास पर ये संघधारी, कब्जाधारी बना हुआ है।
नियम है कि रिटायरमेंट के बाद सरकारी अधिकारी 2 माह तक सरकारी आवास में अपनी आगामी व्यवस्था करने के लिए रह सकता है और उसके बाद इस अवधि को अधिकतम 2 माह तक और बढ़ाया जा सकता है और इस अवधि का मार्केट रेट के हिसाब से किराया वसूला जाता है। लेकिन संघधारी डॉक्टर अधिकतम अवधि के बाद भी कई महीनों तक इस आवास में टिके रहे, और यहां टिकने का मकसद आर्थिक लाभ यानि प्रायवेट प्रैक्टिस करना ही था क्योंकि रहने के लिए उनके पास डीबी सिटी में घर तो है ही, इंदौर और दिल्ली में भी आवास हैं लेकिन उसके बाद भी सरकारी आवास का मोह नहीं छूट रहा है।
संघ जैसे अनुशासित संगठन से जुड़कर अहम व्यक्तियों के साथ अपने संबंधों का हवाला देकर न केवल हमेशा अपना उल्लू सीधा किया बल्कि इन संघधारी ने जीआर मेडीकल कॉलेज और जयारोग्य अस्पताल में काम करने वालों को हमेशा भयाक्रांत बनाए रखा।
दूसरों को नैतिकता, अनुशासन, धैर्य और कर्मठ बनने का अपदेश देने वाले माननीय संघधारी को जब लगा कि सरकारी आवास पर अब केवल रसूख के चलते कब्जा बनाए रखना मुश्किल होगा, तो उन्होने हमेशा की तरह तोड़ निकाल लिया। मेडीकल कॉलेज में फिजियोलॉजी विभाग के ही एक एसोसिएट प्रोफेसर के नाम पर कागजों में बंगला नंबर 14-A अलॉट करा लिया हैं और अब इस सरकारी आवास(बंगले) का केवल व्यवसायिक इस्तेमाल संघधारी साहब कर रहे हैं।
कहते हैं जिसकी लाठी उसकी भैंस…..केंद्र से लेकर प्रदेश तक सरकार बीजेपी की हैं बीजेपी का मूल संघ है और आदरणीय संघ के संघधारी हैं तो क्या गलत….क्या सही…उनके लिए सब जायज हैं। लेकिन संघ में इनसे जुडे प्रतिष्ठित और गंभीर व्यक्तियों के पास अगर इस तरह की जानकारी पहुंचती है तो उन्हे इसकी पड़ताल जरूर कराना चाहिए, क्योंकि जब व्यक्ति किसी भी संगठन में समर्पण और ईमानदारी के बजाए स्वार्थ और झूठ का रास्ता पकड़ लेता है तो इससे उन लोगों की छवि भी धूमिल होती है जिससे वो प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा होता है।