(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)
ग्वालियर29जुलाई2022।ग्वालियर नगर निगम में महापौर और पार्षदों के शपथ ग्रहण समारोह की तारीख 1 अगस्त घोषित हो गई है इसके साथ ही सभापति के चुनाव की तिथि भी जल्द घोषित हो जाएगी। लेकिन इस बार पार्षदों के संख्याबल के हिसाब से बहुमत में होने के बाबजूद भी भाजपा के स्थानीय और प्रदेश के नेताओं के चेहरे पर चिंता और चुनौती साफ देखी जा सकती है चिंता परिषद में भाजपा का सभापति बनाने की और चुनौती भाजपा के पार्षदों को एकजुट बनाए रखने की है। क्योंकि कांग्रेस इस बार भाजपा को नगर निगम चुनाव में कडी टक्कर दे रही है और इस बात की भाजपा को आशंका है कि उनके कुछ पार्षद कांग्रेस को सभापति बनाने में गुप्त(मतदान)मदद कर सकते है। इसीलिए भाजपा पार्षदों की लगातार बडे नेता बैठकें ले रहे है और उन्हे नैतिकता, पार्टी का महत्व, संयम, दूरदृष्टि, प्रलोभन मुक्त राजनिति और अनुशासन का पाठ पढा रहे है।
अब बात पार्षदों के संख्याबल के गणित की…..निकाय चुनाव में भाजपा के 34 तो कांग्रेस के 25 पार्षदों ने जीत हासिल की, तो 6 निर्दलीय और 1 बसपा के पार्षद ने चुनाव जीता..इनमें से तीन निर्दलीय कांग्रेस का दामन थाम चुके है इस लिहाज से कांग्रेस के पास आंकडा 28 पार्षदों का है, अगर बाकी के तीन निर्दलीय और एक बसपा का पार्षद कांग्रेस का हाथ थामते है तो कांग्रेस के पास संख्याबल 32 का होता है ऐसे में अगर कांग्रेस भाजपा का एक भी पार्षद अपने पक्ष में, चाहे वो क्रास वोटिंग के जरिए हो या किसी अन्य तरीके से…कर लेती है तो भाजपा और कांग्रेस के पास बराबर संख्याबल 33-33 का हो जाएगा, ऐसे में महापौर अपना वोट देकर सभापति चुन सकता है। उधर सभापति बनाने के लिए भाजपा के पास बाउंड्रीवॉल पर ही पार्षद संख्या है एक भी पार्षद कम हुआ, तो भाजपा हाथ मलती रह जाएगी। इसीलिए भाजपा का ध्यान अन्य पार्षदों को अपनी तरफ खींचने से ज्यादा अपने ही बचाने पर ज्यादा है।
सूत्र बताते है कि इस बार परिषद को जो गठन हो रहा है उस लिहाज से निर्दलीय और बसपा पार्षद को कांग्रेस के साथ जुडने में ज्यादा फायदा है क्योंकि महापौर कांग्रेस की, एमआईसी कांग्रेस और अगर उनके सहयोग से सभापति भी कांग्रेस को बन जाता है तो वो नगर निगम में सत्तापक्ष की तरफ माने जाएँगे और उन्हे अपने क्षेत्र में विकासकार्यों के लिए बहुत बडी सहूलियत हो सकती है वहीं दूसरी तरफ अगर वो भाजपा का साथ देते है सभापति बनाने में सहयोग करते भी है तो भी उन्हे विपक्ष में ही बैठना पडेगा, जो उनके साथ परेशानी का कारण बन सकता है।
हांलाकि कांग्रेस के लिए भी ये एक बहुत बडा टास्क है और अगर कांग्रेस एक तरह से इस बेहद कडे टास्क को पूरा कर लेती है तो निश्चित ही इसकी धमक प्रदेश में ही नही बल्कि और ऊपर तक जाएगी। हांलाकि चर्चा ये भी है प्रदेश सरकार के ग्वालियर से एक मंत्री दो निर्दलीय पार्षदों को सिंधिया जी से मिलवाने दिल्ली ले जा रहे है अब उसका रिजल्ट क्या रहेगा, ये तो सभापति के लिए होने वाली वोटिंग के दिन ही पता चलेगा।
कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार के पुराने संबंध……कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार भाजपा के पूर्व नेता और नगर निगम में पार्षद रह चुके है उनकी पत्नी महापौर डॉ शोभा सिकरवार भी पार्षद रह चुकी है उनके कई पार्षदों से पुराने संबंध रहे है वहीं सूत्र के हवाले से भाजपा के कुछ पार्षद अभी भी उनके संपर्क में होने का दावा करते है, देखा जाए, तो सतीश सिकरवार नगर निगम में महापौर और एमआईसी कांग्रेस की तैयार कर चुके है उनके पास अब खोने के लिए कुछ नही है केवल सभपाति के रूप में एक और ताकतवर धुरी पाने के लिए है जिसके लिए वो अँदरखाने में हर तरह के प्रयास कर रहे है।
फिलहाल बीजेपी के बडे नेताओं को चिंता अपने ही पार्षदों की घेराबंदी बनाए रखने की है क्योंकि अगर यहां चूक हुई तो बात बहुत दूर तक जाएगी और इसका नुकसान किस-किस भाजपाई को कहां कहां होगा, इसका अंदाजा भाजपाई आलाकमान के अलावा किसी और का लगा पाना बहुत मुश्किल है
”कांग्रेस ने नगर निगम चुनाव में शानदार काम किया है महापौर कांग्रेस की बनने के बाद कांग्रेस का अगला टास्क अपना सभापति बनाने का है और हमें पूरी उम्मीद है कि हम ये कर दिखाएँगे। विपक्ष के कुछ पार्षद भी हमे सहयोग करने को तैयार है। कांग्रेस पूरी दमखम से नगर निगम चुनावों में इस बार उतरी है।
आनंद शर्मा, शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष, ग्वालियर
भाजपा के पार्षद पूरी तरह भाजपा के साथ ही हैं कांग्रेस का काम ही गलतफहमी फैलाने का है और इससे कोई फर्क नही पडने वाला, भाजपा के पार्षद एकजुट है और आप देखेंगे कि परिषद में सभापति भाजपा का ही चुनकर आएगा।
कमल माखीजानी, शहर अध्यक्ष, भाजपा,ग्वालियर