जमीन बेचने की अनुमति कलेक्टर ने दी, रजिस्ट्री और नामांतरण भी हो गया..असली भूस्वामी को 6 साल बाद पता चला

(जितेंद्र पाठक,ग्वालियर)

ग्वालियर27मार्च2023। आज इस खबर में हम आपको जमीन से जुडे ऐसे फर्जीवाडे की कहानी और बाद में हुए न्याय के बारे में बताने जा रहे है जिसे पढकर आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। कि परायों पर तो विश्वास करने से पहले परखा जा सकता है लेकिन अपने ही धोखा करें, तो किया किया जाए।

श्रीमती कमलेश पत्नी शिवचरण सिंह ग्वालियर के ग्राम रमौआ की निवासी है रमौआ में ही सर्वे क्रमांक 242/1मिन रकबा 1.359( 6 बीघा10 बिस्वा ) हैक्टेयर कृषि भूमि जीवन यापन के लिए म.प्र.शासन से वर्ष 1988-89 में पट्टे के द्वारा प्राप्त हुई थी तब से वर्तमान तक उक्त भूमि पर कमलेश काबिज होकर कृषि कार्य कर रही है कमलेश के पति शिवचरण को वर्ष 2012 से मानसिक बीमारी हो गई। इस बीमारी का इलाज पहले तो घर पर ही चलता रहा, बाद में उनका इलाज मानसिक रोग विशेषज्ञ से कराना जरूरी हो गया, जो अभी तक चल रहा है। शिवचरण को इलाज के लिए उनके बडे भाई और कमलेश के जेठ औतार सिंह ही डॉक्टर के पास ले जाते थे।

इस दौरान साल 2020 के दौरान ऐसा कुछ हुआ कि कमलेश के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। कमलेश के पास उस जमीन पर कुछ लोग पहुंचकर जमीन खाली कराने का दबाब ये कहकर बनाने लगे कि ये जमीन उन्होने खरीद ली है। कमलेश द्वारा जब इस संबंध में जानकारी प्राप्त की गई तो उसके होश ही उड़ गए। कमलेश को पता चला कि उसके जेठ औतार सिंह जब उसके पति शिवचरण को इलाज के लिए ले जाते थे उसी दौरान औतार सिंह ने कुछ लोगों के साथ मिलकर न केवल शिवचरण के नाम से फर्जी मुख्यारआम बना लिया बल्कि कलेक्टर से पट्टे की जमीन के बिक्री की अनुमति लेकर उसे बेच भी दिया। पट्टे की जमीन की अनुमति लेने के लिए कलेक्टर को भी गुमराह किया गया, बताया गया है कि बेटी के विवाह के लिए धन की आवश्यकता होने से पट्टे की जमीन की बिक्री की अनुमति चाहिए, जबकि कमलेश की बेटी का विवाह तो दो साल पूर्व ही गया था

जिसके बाद कमलेश ने संभागीय आयुक्त को लिखित शिकायत की। शिकायत में कमलेश ने कहा कि मेरे पति शिवचरण के नाम से फर्जी एवं कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर 4.12.2013 को एक फर्जी मुख्त्यारआम श्याम शर्मा पुत्र रामनरेश शर्मा निवासी कुम्हरपुरा मुरार के हित में दर्शाया गया है उक्त मुख्त्यारआम के आधार पर 1.1.2014 को फर्जी व कूट रचित विक्रयपत्र जमीन हडपने के उद्देश्य से श्याम शर्मा पुत्र रामनरेश शर्मा द्वारा सुनील गांधी पुत्र शिवलाल गांधी निवासी 17-श्रीराम कॉलोनी झांसी रोड ग्वालियर के हित में तैयार कराया गया। और उसका नामांतरण भी करा लिया। इस विक्रयपत्र में सहमतिकर्ता के रूप में नरेंद्र शर्मा पुत्र हीरालाल शर्मा निवासी बिरला नगर ग्वालियर, कल्याण गिरि पुत्र महादेव गिरी निवासी आदर्श कॉलोनी गोले का मंदिर ग्वालियर और बेताल सिंह पुत्र मंगल सिंह निवासी ग्राम सिरौल जिला ग्वालियर के नाम अंकित है जबकि इन लोगों का मेरी जमीन से कोई संबंध भी नही है

कमलेश द्वारा की गई संभागीय आयुक्त को शिकायत

कमलेश ने उक्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही और अवैध रूप से जमीन विक्रय की कलेक्टर द्वारा प्राप्त की गई अनुमति निरस्त करने और नामांतरण तथा विक्रय पत्र निरस्त करने की लिखित मांग का शिकायत पत्र संभागायुक्त को दिया था। जिसके बाद संभागायुक्त ने पूरा मामला एसडीएम न्यायालय झांसी रोड ग्वालियर में भेजा।

एसडीएम न्यायालय झांसी रोड ग्वालियर में कमलेश की अपील पर सुनवाई के बाद एसडीएम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अपीलार्थी द्वारा कमलेश सिंह (संरक्षक) पत्नी शिवचरण सिंह( मानसिक रोगी) की जमीन का जिस मुख्त्यारआम द्वारा विक्रय पत्र संपादित किया गया है इसमें नामांतरण आदेश जारी करने से पूर्व मूल कृषक यानि शिवचरण को सुनवाई को अवसर देना आवश्यक है वहीं अपीलार्थी चूंकि मानसिक रोगी बताया गया है तो क्रेता विक्रेता को नामातंरण आदेश से पूर्व सुनना अत्यंत आवश्यक था किंतु अधीनस्थ न्यायालय ने केवल विक्रय पत्र के आधार पर एकपक्षीय नामांतरण आदेश जारी कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि विक्रय पत्र में उल्लेखित राशि और चेक भुगतान के संबंध में सुनील गांधी एवं अन्य द्वारा कोई भी दस्तावेज पेश नही किया गया। लिहाजा ऐसा नामातंरण आदेश स्थिर रखने योग्य नही है लिहाजा नामांतरण निरस्त कर पूर्व की स्थिति बहाल की जाती है।

मुख्त्यारआम जिसके आधार पर रजिस्ट्री कर दी गई

कुछ नियम और तथ्य भी इस पूरे फर्जीवाडे को पोल खोलते नजर आते है जैसे कि

इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जिस व्यक्ति श्याम शर्मा के नाम मुख्तयारआम बनाया गया है उसका कमलेश और उसके परिवार से कोई लेनादेना ही नही है तो फिर उसे जमीन बेचने का अधिकार कैसे मिल गया।

वहीं यह भी कानून है कि कोई भी विक्रय पत्र अगर किसी मुखत्याआम के द्वारा संपादित किया जाता है तो तहसीलदार उस विक्रय पत्र को पंजी पर नामांतरण नहीं कर सकता, उसे उस रजिस्ट्री के नामांतरण के लिए तहसील न्यायालय में प्रकरण कायम करना होगा। प्रकरण कायम करने के पश्चात सभी पक्षों को सूचना पत्र जारी किए जाएंगे। विक्रेता , क्रेता और रजिस्ट्री में गवाह उन सब के साक्ष्य लेने के उपरांत ही उक्त विक्रय पत्र का नामांतरण किया जा सकेगा, क्योंकि यह सर्वविदित विधि मान्य है कि कब्जा भूमि का मूल भूमि स्वामी ही प्रदान करता है इस प्रकरण में मूल भूमि स्वामी ना तो तहसील न्यायालय में उपस्थित हुआ, ना ही उसने कब्जा क्रेता गण को सुपुर्द किया ना ही कोई धनराशि विक्रेता गण को प्राप्त हुई।

वहीं इस मामले में सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि रजिस्ट्री विक्रय पत्र दिनांक 1 /1/2014 को विक्रय पत्र में 02 करोड़ 31 लाख 44000 रूपए में भूमि को क्रय करना बताया गया एवं संपूर्ण धनराशि चेक के माध्यम से देय होना बताई गई और समस्त चेक नंबर रजिस्टर्ड विक्रय पत्र में अंकित किए गए, परंतु उक्त चेको में से किसी एक भी चेक का भुगतान विक्रेता/भूमि स्वामी शिव सिंह के खाते में नहीं होना पाया गया।

वहीं शिव सिंह पुत्र हरनारायण सिंह अनपढ़ होकर मानसिक रोगी भी है ऐसी स्थिति में मुख्तियार आम में परिवार के सदस्यों का गवाह होना एवं सहमति होना अति आवश्यक थी पर ऐसा भी मुखत्यार आम दिनांक 4/12/ 2013 को संपादित कराते समय जरूरी नहीं समझा गया

वर्ष 2013 में जिन झूठे तथ्यों के आधार पर कमलेश के पति की पट्टे की जमीन की बिक्री की अनुमति कलेक्टर न्यायालय से प्राप्त की थी उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि ‘’ शिवचरण सिंह पुत्र हरनाम सिंह निवासी ग्राम रमौआ के भूमि विक्रय किए जाने की अनुमति उक्त भूमि के बदले अन्य ग्राम में भूमि क्रय करने की शर्त पर प्रदान की जाती है उक्त भूमि का विक्रयपत्र कलेक्टर द्वारा निर्धारित गाईडलाईन अनुसार ही संपादित की जाए। विक्रीत भूमि का मूल्य आवेदक को बैंक ड्राफ्ट या चेक के माध्यम से क्रेता द्वारा किया जाएगा। उक्त शर्तों का पालन नही करने पर आवेदकगण द्वारा किया गया विक्रयपत्र स्वतः ही शून्य माना जाएगा। और उक्त विक्रय पत्र के आधार पर अन्य कोई कार्यवाही नही की जा सकेगी।‘’ यानि उक्त विक्रय पत्र के आधार पर तहसीलदार नामांतरण नहीं कर सकता  जब तक कि विक्रेता को विक्रय धन प्राप्त नहीं होगा

लेकिन इस पूरे मामले में अनुमति की शर्तों का पालन कहीं नही हुआ, सबसे बडी बात ये है भूमि के वास्तविक स्वामी को पता ही नही चला और उसकी जमीन की बिक्री की अनुमति से लेकर रजिस्ट्री और नामांतरण तक हो गया। इस मामले में आरोप मूल भूस्वामी शिवचरण के भाई औतार सिंह पर है जिसने अन्य लोगों के साथ मिलकर इस कारनामे को अंजाम दिया। बहरहाल इस मामले में फिलहाल तो कमलेश को एसडीएम न्यायालय से फौरी राहत मिल गई है लेकिन इसके लिए भी उसे 3 साल की वक्त लगा है

लेकिन ये एक सबक भी है कि अगर आपके पास कोई जमीन, प्लॉट या मकान है तो समय समय पर सरकारी दस्तावेजों में उसकी स्थिति पता करते रहें, क्योंकि इस मामले जैसी स्थिति किसी के साथ भी बनने में देर नही लगेगी। और जब पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है

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