बच्चों का आसामान्य व्यवहार बड़ी समस्या, समय रहते पहचान जरूरी, हो सकते हैं गंभीर परिणाम-डॉ.सी.पी. बंसल

ग्वालियर27फरवरी2025।इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) 45,000 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञों का एक प्रमुख संगठन है, जो भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। अनुसंधान, शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से, IAP साक्ष्य-आधारित दिशानिर्देश प्रदान करता है ताकि बच्चों और किशोरों का समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सके।

व्यवहार की परिभाषा और महत्व
व्यवहार का तात्पर्य उन सभी शारीरिक और भावनात्मक गतिविधियों से है, जो मनुष्य करता है। यह संस्कृति, दृष्टिकोण, भावनाओं, मूल्यों, नैतिकता, अधिकार, संबंध, प्रेरणा, दबाव और आनुवंशिकी से प्रभावित होता है।

बच्चों में उम्र के अनुसार व्यवहार का एक विस्तृत स्पेक्ट्रम होता है, लेकिन कई माता-पिता और देखभाल करने वालों में असामान्य व्यवहार को पहचानने और संभालने की जानकारी की कमी होती है।

आज के समय में बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं। चूंकि व्यवहार बचपन में ही विकसित होता है, इसलिए इसे प्रारंभिक चरण में पहचानना और समय पर उचित हस्तक्षेप करना बहुत महत्वपूर्ण है।

मेडिकल कंडीशंस और विकास संबंधी विकारों में सह-रुग्णता (को-मॉर्बिडिटी) के रूप में व्यवहार संबंधी समस्याओं की पहचान करना भी आवश्यक है।

दीर्घकालिक प्रभाव
यदि समय पर इन समस्याओं को नहीं संभाला गया, तो इससे आत्महत्या, नशे की लत, व्यक्तित्व विकार और समायोजन विकार (एडजस्टमेंट डिसऑर्डर) जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

बाल रोग विशेषज्ञ की भूमिका
बाल रोग विशेषज्ञों की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की व्यवहारिक समस्याओं को पहचानें और समाधान प्रदान करें।

विभिन्न आयु समूहों में आम व्यवहारिक समस्याएं

० से ३ वर्ष की आयु:
• अंगूठा चूसना
• पिका (अवांछनीय चीजें खाने की आदत)
• सांस रोकने के दौरे (ब्रीथ होल्डिंग स्पेल)
• अत्यधिक चिपकने की प्रवृत्ति (अलग होने का डर)
• गुस्से में आना (टैंट्रम्स)
• अत्यधिक सक्रियता (हाइपरएक्टिविटी)

४ से १२ वर्ष की आयु:
• ध्यानाभाव- अति सक्रियता विकार (ADHD)
• विघटनकारी व्यवहार
• स्कूल जाने से इनकार
• बिस्तर गीला करना

१२ से १९ वर्ष की आयु:
• माता-पिता से दूरी बनाना
• अवज्ञा (डिसओबीडियंस)
• जोखिम भरे व्यवहार
• बेचैनी और मूड स्विंग्स
• अवसाद और चिंता
• मोबाइल और इंटरनेट की लत

कब समझें कि व्यवहार असामान्य है?
• अत्यधिक जिद्दी स्वभाव
• बार-बार मूड में बदलाव
• अत्यधिक चिंता या अवसाद
• अत्यधिक सक्रियता (हाइपरएक्टिविटी)
• घर, समाज या स्कूल में सामंजस्य स्थापित न कर पाना

यदि समय पर उचित ध्यान न दिया जाए, तो बच्चा मानसिक स्वास्थ्य विकारों से ग्रसित हो सकता है। आत्महत्या, ADHD, और शैक्षिक समस्याओं जैसी गंभीर स्थितियां उसके भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं और उसे एक उत्पादक वयस्क बनने से रोक सकती हैं।

व्यवहारिक समस्याओं का प्रबंधन
• सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करें और अनुचित व्यवहार को नजरअंदाज करें
• कठोर और दंडात्मक पालन-पोषण से बचें
• व्यवहारिक हस्तक्षेप (थैरेपी) अपनाएं
• परिवार को शिक्षित करें और पारिवारिक परामर्श लें
• आवश्यक होने पर दवाओं का उपयोग करें
• मनोचिकित्सक या परामर्शदाता से सलाह लें

प्रतिकूल बचपन के अनुभव (Adverse Childhood Experiences – ACE)

बचपन में अनुभव की गई प्रतिकूल परिस्थितियों, जैसे कि नशा, घरेलू हिंसा, और आपराधिक गतिविधियों का प्रभाव, बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा पड़ता है। इन सभी स्थितियों को सामूहिक रूप से “एडवर्स चाइल्डहुड एक्सपीरियंस” कहा जाता है।

IAP द्वारा उपलब्ध दिशानिर्देश (iapindia.org)
• बदमाशी (बुलिंग)
• अंगूठा चूसना, गुस्से के दौरे, पिका
• बिस्तर गीला करना (एन्यूरिसिस) और मल त्याग की समस्या (एंकोप्रेसिस)
• हकलाना और तुतलाना
• अत्यधिक सक्रिय बच्चा (हाइपरएक्टिव चाइल्ड)
• बौद्धिक विकलांगता (इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी)
• किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य
• किशोरों में सामान्य मानसिक बदलाव

माता-पिता के लिए सुझाव
• प्रतिदिन का रूटीन निर्धारित करें
• चार्ट और चेकलिस्ट का उपयोग करें
• ध्यान भटकाने वाले तत्वों को कम करें
• सीमित विकल्प दें
• छोटे और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करें
• अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करें
• समस्या वाले व्यवहार की पहचान करें
• शांतिपूर्ण अनुशासन अपनाएं (जैसे टाइम आउट, ध्यान भटकाना, बच्चे को स्थिति से बाहर निकालना)

कार्रवाई की आवश्यकता

IAP सभी माता-पिता, शिक्षकों और नीति निर्माताओं से अपील करता है कि वे बच्चों और किशोरों को आत्महत्या, मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसी समस्याओं से बचाने के लिए मिलकर काम करें।

सार्वजनिक जागरूकता अभियानों, ऑनलाइन सामग्री पर कड़े नियम, और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों की मदद से अगली पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।

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