
ग्वालियर14नवंबर2022। मुझे लगता है की कथक ही जिंदगी है…मंच को देखते ही लगता है कि आज फिर जिंदगी को खुशियां मिल गयी है।ओर इस खुशी को हर कलाप्रेमी तक पहुचाने की कोशिश करती हूं…महज 13 साल की एक गुड़िया ऐसा बोले तो लगता है तो लगता है फिल्मी डायलॉग बोल रही होगी….लेकिन जब बाल दिवस पर इस बाल कलाकार से मिले तो ये बाते महज डायलॉग नही उस कलाकार की सच्चाई बया कर रहा था।आज बात करते है इसी बाल काल कलाकार की… जिसने देश ही नही विदेशों में भी कथक के जरिये भारतीय नृत्य शैली में अलग पहचान बनाई।हम बात कर रहे है 13 साल की अंतरराष्ट्रीय कथक नृत्यांगना डॉल जयेश कुमार की…डॉल ओर मंच के बीच ये रिश्ता नया नही है…डॉल महज 4 साल की उम्र में मंच पर कथक की लाइव प्रस्तुति के लिए मंच पर चढ़ी थी…उसके बाद मंच ओर डॉल का रिश्ता ऐसे बना कि अबतक 1152 से ज्यादा प्रस्तुतियां देश विदेश के अलग अलग मंच पर दे चुकी है…
13 साल की डॉल जयेश कुमार किड्ज कार्नर स्कूल के 8 वी कक्षा की छात्रा है।डॉल की उम्र को देखकर लगता नही है कि वह घरानेदार कथक की उस्ताद है।डॉल की कत्थक प्रतिभा को ग्वालियर के कथक गुरु स्व पुरुषोत्तम नायक जी ने पहचान था।कथक गुरु श्री नायक जी ने डॉल को एक कार्यक्रम में पुरुस्कार देने के बाद उनके माता पूजा और पिता जयेश कुमार से मिले और कहा कि आपके घर एक बड़े कलाकर ने जन्म लिया है इसे रोकना मत…एक सड़क दुर्घटना में डॉल घायल हुए तो श्री नायक जी डॉल से मिलने घर भी गए ओर डॉल को पूछा नटराज ठीक हो…डॉल को कथक के हर घराने के स्नेह मिला है।लखनऊ घराने की कथक वर्कशाप में डॉल को कथक गुरु दीपक महाराज ओर उनकी सुपुत्री कथक नृत्यांगना रागिनी महाराज से सीखने का मौका मिला।इस दौरान डॉल की प्रतिभा को देखते हुई वर्कशाप के समापन समारोह में डॉल को सोलो प्रस्तुति के लिए मौका मिला।जिसे देखने के बाद कथक सम्राट कथक गुरु स्व बिरजू महाराज के पुत्र दीपक महाराज में व्यक्तिगत इनाम दिया और डॉल को डॉल महाराज का उप नाम दिया।डॉल को लखनऊ घराने के साथ जयपुर घराने का भी आशीर्वाद समान रूप से मिला।जयपुर घराने के कथक गुरु हरीश गंगानी ने डॉल को घरानेदार तोड़े टुकड़े गुरु मंत्र की तरह दिए ओर उनके एक वर्कशाप में प्रस्तुति का मौका भी दिया।
डॉल ने कथक की प्रारंभिक शिक्षा अपनी माता पूजा जयेश कुमार से ली फिर गुरु शिष्य परम्परा से जयपुर घराने की नृत्यांगना ओर राजा मानसिंह तोमर विश्वविद्यलय के कथक विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ अंजना झा से सीखना शुरू किया।एक लंबे समय के बाद डॉल ने माधव संगीत महाविद्यालय के कथक की शिक्षा प्रारंभ की।वही लखनऊ घराने की कथक गुरु डॉ तरुण सिह से भी लखनऊ घराने की गुरु शिष्य परम्परा से शिक्षा ली…डॉल ने कथक के साथ भरतनाट्यम भी सीखा है।
डॉल ने मात्र 8 साल की उम्र में राजा मानसिंह तोमर संगीत और कला विश्वविद्यालय के राज्य युवा उत्सव 2018 को जीत कर अलग पहचान बनाई थी।वही 2018 में ही नेपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय नृत्य महोत्सव में डॉल की कला को अंतरराष्ट्रीय नृत्य कला अवार्ड से सम्मानित किया गया।डॉल को देश के ज्यादातर सभी राज्यो के मंच पर प्रस्तुति के साथ ही सम्मान मिल चुका है।डॉल बालीबुड अवार्ड शो में दो बार प्रस्तुति कर चुकी है।डॉल के नाम पर कथक को लेकर 4 राष्ट्रीय रिकार्ड है-
1-2018 तक मात्र 8 साल की उम्र तक 510 स्टेज शो।
2-सबसे कम उम्र यानी 8 साल की उम्र में मध्यप्रदेश के राजा मानसिंह संगीत विश्व विद्यालय के राज्य स्तरीय युवा उत्सव की विजेता ।
3-2018 तक लगातार 110 राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पीवर क्लासीकल नृत्य की विजेता।
-सबसे कम उम्र में 1 घंटे.20 मिनट तक लगातार कथक की लाइव प्रस्तुति।
वर्तमान में डॉल वह 620 स्टेज शो ओर 100 से ज्यादा डिजिटल शो (क्लासीकल कथक के) कर चुकी है।
-अंतरराष्ट्रीय नृत्य प्रतियोगिता काठमांडु ओर राजा मानसिंह विश्वविद्यालय के राज्यस्तरीय युवा उत्सव 2018-19 की राज्यस्तरीय विजेता सहित राष्ट्रीय स्तरीय 154 पीवर क्लासीकल प्रतियोगिताओ में लगातार विजेता का खिताब है।
-डॉल को नेपाल में अंतरराष्ट्रीय नृत्य और कला अवार्ड के अलावा राष्ट्रीय स्तर के 119 अवार्ड मिले है।
-दूरदर्शन में क्लासीकल नृत्यांगना के रूप में कई (15 से ज्यादा )प्रस्तुतियां का प्रसारण हो चुका है।
- अब तक 1152 प्रस्तुतियां दे चुकी है….
-डॉल को कई अंतरराष्ट्रीय ओर राष्ट्रीय समारोह में प्रस्तुति का अवसर मिला है।विदेशों के साथ ही देश के ज्यादातर शहरों में प्रस्तुतियों के साथ सम्मान भी मिला है।
-डॉल विश्व की एकमात्र कथक कलाकार जो सबसे कम उम्र से ये से डेढ़ घण्टे कथक लाइव करती है।
-मध्यप्रदेश की एकमात्र क्लासीकल कथक कलाकार है जिसे अंतराष्ट्रीय ताज महोत्सव में लगातार 3 बार आमंत्रित किया।
–डॉल को लखनऊ घराने से महाराज का उपनाम मिला है।
-देश और विदेश में डॉल को छोटे बिरजू महाराज के नाम से बुलाते है।
-डॉल जयेश कुमार संगीत की नगरी ग्वालियर जो गायन ओर वादन में प्रसिद्ध है उसमें नृत्य को भी जोडने में लगी है…जिससे संगीत शब्द पूरा हो पाए।