(डॉ. सुनील अग्रवाल)
काले अंग्रेजों का खेल देखिए कि वे एक ही कार्य से व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के भाव पैदा कर देते हैं। वही भाव आज मेरे समयबगद्ध पदोन्नति के आदेश के बाद आए जब लोगों ने बधाई देना शुरू की तब मेरे मन में *खुशी* पैदा हुई। लेकिन तभी मेरे दोस्तों ने मुझसे कहा अरे तुम तो पहले भी प्रोफेसर बन गए थे तब मुझे *आश्चर्य* हुआ और हां मुझे एहसास हुआ कि 2018 में मुझे प्रोफेसर नामित किया गया था लेकिन सिर्फ तब मैं नाम का ही प्रोफेसर बनाया गया था और मुझे किसी भी अन्य प्रोफेसर को मिलने वाले प्रावधानों, शैक्षणिक सुविधाओं एवं वित्तीय लाभों से वंचित रखा गया था। लेकिन *आत्म संतोष* था कि मुझे अपने अन्य कनिष्ठ चिकित्सकों के समक्ष *हीन भावना* का एहसास नहीं होने देता था कि वे मेरी संस्था में ही या अन्य जगहों पर वरिष्ठ पदों पर मुझसे पहले पदोन्नति प्राप्त कर चुके हैं। आज के आदेश के बाद भी मैं *हताश* हूं कि मुझे अभी पूर्ण रूप से प्रोफेसर बनना भी बाकी है और उसके लिए ना जाने कितनी मंजिले पार करनी हैं ? और *जिज्ञासु* भी हूं कि आखिर यह पूर्ण प्रोफेसर क्या होता है? और *अचंभित*भी हूं कि बाकी सभी अन्य प्रकार के प्रोफेसर के पदों में इतनी विभिधताएं क्यों हैं?
आज के बाद में यह भी *असमंजस* की स्थिति है कि मैं अब अपने आपको प्रोफेसर कब से मानू ? 2018 से जब मुझे प्रोफेसर नामित किया गया था जिस दिन का मैं आज तक जश्न मनाता आ रहा हूं या फिर अब 1 जनवरी 2019 की दिनांक से जब से प्रोफेसर के पद पर समयबद्ध पदोन्नति आज के आदेश में दी गई है या फिर जब से मैं उक्त पद पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराऊंगा?समयबद्ध पदोन्नति के आदेश की *खुशी के साथ रोष* भी हो रहा है कि समयबद्ध पदोन्नति की पात्रता तो मुझे 2016 से थी फिर यह 2019 से क्यों दी गई? मैं इस बात पर भी *विस्मित* हूं कि जहां चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में पढ़ाए जाने की बात चल रही है वहां अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख 1 जनवरी ही क्यों चुनी गई? इस प्रश्न का उत्तर मुझे *याचक* की भूमिका में न्यायालय से मिल सकता है क्योंकि हम शासन, स्वायत्तता, स्वशासी एवम अराजक नियमों के चौराहे पर *निरीह* खड़े हैं जिस तरफ भी चलने की कोशिश करो उधर से ही लात मार कर दूसरी तरफ मुंह मोड़ दिया जाता है। मुझे *उम्मीद* भी है कि भविष्य में मैं पूर्ण प्रोफेसर भी बनूंगा। लेकिन उसके लिए कौन सा पद मेरे लिए रिक्त है या कौन सा कमरा या टेबल कुर्सी मेरे लिए इंतजार कर रही है हालांकि आज भी मुझे नहीं पता कि अब कौन सा कमरा उक्त आदेश के बाद मुझे आवंटित होगा जहां मैं अपनी नाम पट्टिका लगा सकूंगा?मैं *क्रोधित* भी हूं इस व्यवस्था से जिसमें काले अंग्रेजों की अशिक्षितता कहें, मूर्खता कहें, कुशासन कहें या बाबरता कहें कि उनके द्वारा चिकित्सा शिक्षा विभाग में बनाए *अराजक भर्ती नियम 2018* जिनको उन्होंने आदर्श भर्ती नियम की संज्ञा दी है उसके राजा धृतराष्ट्र की भूमिका में हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं।*दो बार प्रोफेसर बनने के बाद एक बार और बनना बाकी है*काले अंग्रेजों का खेल देखिए कि वे एक ही कार्य से व्यक्ति के अंदर कई प्रकार के भाव पैदा कर देते हैं। वही भाव आज मेरे समयबद्ध पदोन्नति के आदेश के बाद आए जब लोगों ने बधाई देना शुरू की तब मेरे मन में *खुशी* पैदा हुई। लेकिन तभी मेरे दोस्तों ने मुझसे कहा अरे तुम तो पहले भी प्रोफेसर बन गए थे तब मुझे *आश्चर्य* हुआ और हां मुझे एहसास हुआ कि 2018 में मुझे प्रोफेसर नामित किया गया था लेकिन सिर्फ तब मैं नाम का ही प्रोफेसर बनाया गया था और मुझे किसी भी अन्य प्रोफेसर को मिलने वाले प्रावधानों, शैक्षणिक सुविधाओं एवं वित्तीय लाभों से वंचित रखा गया था। लेकिन *आत्म संतोष* था कि मुझे अपने अन्य कनिष्ठ चिकित्सकों के समक्ष *हीन भावना* का एहसास नहीं होने देता था कि वे मेरी संस्था में ही या अन्य जगहों पर वरिष्ठ पदों पर मुझसे पहले पदोन्नति प्राप्त कर चुके हैं। आज के आदेश के बाद भी मैं *हताश* हूं कि मुझे अभी पूर्ण रूप से प्रोफेसर बनना भी बाकी है और उसके लिए ना जाने कितनी मंजिले पार करनी हैं ? और *जिज्ञासु* भी हूं कि आखिर यह पूर्ण प्रोफेसर क्या होता है? और *अचंभित* भी हूं कि बाकी सभी अन्य प्रकार के प्रोफेसर के पदों में इतनी विविधताएं क्यों हैं?
आज के बाद में यह भी *असमंजस* की स्थिति है कि मैं अब अपने आपको प्रोफेसर कब से मानू ? 2018 से जब मुझे प्रोफेसर नामित किया गया था जिस दिन का मैं आज तक जश्न मनाता आ रहा हूं या फिर अब 1 जनवरी 2019 की दिनांक से जब से प्रोफेसर के पद पर समयबद्ध पदोन्नति आज के आदेश में दी गई है या फिर जब से मैं उक्त पद पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराऊंगा?समयबद्ध पदोन्नति के आदेश की *खुशी के साथ रोष* भी हो रहा है कि समयबद्ध पदोन्नति की पात्रता तो मुझे 2016 से थी फिर यह 2019 से क्यों दी गई? मैं इस बात पर भी *विस्मित* हूं कि जहां चिकित्सा शिक्षा को हिंदी में पढ़ाए जाने की बात चल रही है वहां अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख 1 जनवरी ही क्यों चुनी गई? इस प्रश्न का उत्तर मुझे *याचक* की भूमिका में न्यायालय से मिल सकता है क्योंकि हम शासन, स्वायत्तता, स्वशासी एवम अराजक नियमों के चौराहे पर *निरीह* खड़े हैं जिस तरफ भी चलने की कोशिश करो उधर से ही लात मार कर दूसरी तरफ मुंह मोड़ दिया जाता है। मुझे *उम्मीद* भी है कि भविष्य में मैं पूर्ण प्रोफेसर भी बनूंगा। लेकिन उसके लिए कौन सा पद मेरे लिए रिक्त है या कौन सा कमरा या टेबल कुर्सी मेरे लिए इंतजार कर रही है हालांकि आज भी मुझे नहीं पता कि अब कौन सा कमरा उक्त आदेश के बाद मुझे आवंटित होगा जहां मैं अपनी नाम पट्टिका लगा सकूंगा?मैं *क्रोधित* भी हूं इस व्यवस्था से जिसमें काले अंग्रेजों की अशिक्षितता कहें, मूर्खता कहें, कुशासन कहें या बाबरता कहें कि उनके द्वारा चिकित्सा शिक्षा विभाग में बनाए *अराजक भर्ती नियम 2018* जिनको उन्होंने आदर्श भर्ती नियम की संज्ञा दी है उसके राजा धृतराष्ट्र की भूमिका में हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं।
(लेखक डॉ सुनील अग्रवाल प्राध्यापक सर्जरी गजरा राजा चिकित्सा महाविद्यालय ग्वालियर एवं अध्यक्ष प्रोग्रेसिव मेडीकल टीचर्स एसोसिएशन मध्य प्रदेश है। और ये उनके निजी विचारों पर आधारिक लेख है जिसे पूर्ण रूप से उनके द्वारा लिखा एवं संपादित किया गया है।)