माफिया के खिलाफ सरकार, लेकिन माफिया को संरक्षण देने वाले अधिकारियों पर कब होगा एक्शन ?

ग्वालियर। कमलनाथ सरकार के बाद अब मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने जिस तरह से माफिया राज के खिलाफ सख्त कारवाई करने का एक्शन प्लान बनाया है उसकी जरूरत तो काफी समय से महसूस की जा रही थी। क्योंकि माफिया के खिलाफ कारवाई के लिए केवल बैठके होती रही है लेकिन कारवाई नजर नही आती थी अब कहीं न कही कुछ एक्शन दिख रहा है जिस तरह से सीएम ने पुलिस और प्रशासन को इसके लिए फ्री हैंड दिया है वो भी सराहनीय कदम है। पूरे प्रदेश में नौकरशाह और प्रशासन फिलहाल माफिया की फाईलों को टटोलने में लगा है क्योंकि सरकार की टॉप प्रयोरिटी में इस वक्त माफिया के खिलाफ सख्त कारवाई है। लेकिन एक बडा सवाल ये भी है कि माफिया बिना संरक्षण के पनप नही सकता और न ही अपनी जड़े मजबूत कर सकता है। ऐसे में माफिया को संरक्षण देने वाले अधिकारियों की भी लिस्टिंग होनी चाहिए।

बिना अधिकारियों के संरक्षण के माफिया बनना संभव नहीं

कुछ दिनों पहले सिंघम फिल्म का एक डायलॉग चर्चित हुआ था कि अगर पुलिस ठान ले तो मंदिर के सामने से चप्पल भी चोरी नही हो सकती। यही डॉयलॉग इस वक्त प्रदेश में चल रही माफिया के खिलाफ कारवाई पर सटीक बैठता है। माफिया एक दिन या एक महीने में पैदा नही हुए, अवैध धंधों से माफिया ने अरबों की संपत्ति भी एक दिन या एक महीने में नही बनाई। निश्चित रूप से समय समय पर तैनात अधिकारियों ने माफिया का कारगुजारी के समय जानबूझकर आंखें बंद कर ली। अवैध निर्माण होने दिए। सरकारी जमीन घेरने दी गई, अवैध शराब की तस्करी होने दी गई। इसी तरह माफिया की जो कैटेगरी तय की गई है उसमें उस कैटेगरी के अधिकारियों की सहमति के बिना ये सब होना संभव नही था। लिहाजा सरकार को माफिया के सहयोगी के तौर पर ऐसे अधिकारियों के खिलाफ भी एक्शन लेने की जरूरत है।

माफिया-अधिकारियों का गठजोड भी हो ध्वस्त

सरकार चाहती है कि प्रदेश माफिया मुक्त बने, अधिकारी भी अब यही कह रहे है। लेकिन अब जब माफिया के किसी अवैध धंधे या निर्माण पर कारवाई हो, तब उस संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी से भी पूछा जाना चाहिए, कि उसे ये अवैध धंधा या निर्माण क्यों नजर नही आया, उसने क्यों माफिया के अवैध धंधे या निर्माण को नजरँदाज किया, क्यों उसने इसके खिलाफ की गई शिकायतों पर कारवाई नही की। संबंधित अधिकारी और उस माफिया के संबंधों की भी जांच होना चाहिए, और माफिया के साथ उस अधिकारी पर माफिया के सहयोगी के तौर पर कारवाई होनी चाहिए। क्योंकि जब तक माफिया और भ्रष्ट अधिकारियों पर एक साथ एक्शन नही होगा। तब तक माफिया पनपते रहेंगे। सरकार को भी जनता में विश्वास जगाने के लिए ऐसा कदम उठाने की जरूरत है। 

इनका कहना है-

एम.बी.ओझा, सेवानिवृत्त IAS – जिन अधिकारियों के कार्यकाल में माफिया को संरक्षण मिला है। निश्चित रूप से उन पर कार्यवाही होनी चाहिए। क्योंकि अगर माफिया पनपा है तो अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन क्यों नही किया।

लाखन सिंह यादव, पूर्व मंत्री, म.प्र. – निश्चित रूप से ऐसे अधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिए, जिन्होने माफिया को संरक्षण दिया है। बीजेपी सरकार में ऐसे अधिकारियों पर कार्यवाही करने के बजाए उनकी हौंसला अफजाई की जा रही है। बीजेपी के नेता और अधिकारी माफिया को संरक्षण देकर भ्रष्टाचार कर रहे है। अवैध उत्खनन करने वाले माफिया पर कार्यवाही क्यों नही की जा रही। बल्कि अवैध उत्खनन के खिलाफ बोलने वाले भितरवार जनपद अध्यक्ष पर ही प्रकरण दर्ज करा दिया। अवैध उत्खनन की शिकायत मिलने के बाबजूद अधिकारी कार्यवाही नही कर रहे है कायदे से तो ऐसे अधिकारियों पर भी सबसे पहले कार्यवाही होनी चाहिए।

विवेक नारायण शेजवलकर, सांसद, ग्वालियर – पहले भी इस तरह की बात सामने आई थी कि माफिया को संरक्षण देने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिए। माफिया के खिलाफ कार्यवाही तो ठीक है लेकिन जिन अधिकारियों ने अपनी आँखों के सामने माफिया को मनमानी करने दी, उनको भी शासन को कार्यवाही के दायरे में रखना चाहिए। क्योंकि अधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। हांलाकि एंटीमाफिया मुहिम में कांग्रेस सरकार ने चुन चुन कर कार्यवाही की थी ये प्रवृत्ति ठीक नही है। नियम और कानून के दायरे में एक्शन होना चाहिए।

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