
ग्वालियर चंबल अंचल में बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लडे सिँधिया समर्थक उम्मीदवारों में से केबिनेट मंत्री इमरती देवी डबरा सीट से चुनाव हार चुकी है ग्वालियर पूर्व सीट से पहली बार विधायक बने मुन्नालाल गोयल भी विधानसभा नही पहुंच पाए। गौरतलब है कि ये दोनों ही कांग्रेस के उन उम्मीवारों से हारे, जिनको इन्होने 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर हराया था। तीन बार से विधायक रही इमरती देवी अब न तो मंत्री रही और न ही विधायक। मुन्नालाल भी विधायकी का बमुश्किल 14 महीने ही लुत्फ उठा सके। अब इमरती देवी और मुन्नालाल की राजनैतिक जीवन का दारोमदार सिंधिया पर आकर टिक गया है। क्योंकि बीजेपी ने सिंधिया समर्थकों को टिकट जरूर दिया है लेकिन ये समर्थक अब भी सिंधिया बीजेपी के नेता माने जा रहे है।
क्यों हारे मुन्नालाल
मुन्नालाल गोयल ने पूरा उपचुनाव प्रतिद्वंदी प्रत्याशी सतीश सिकरवार की छवि को लेकर लडा। जब तक सतीश सिकरवार बीजेपी में थे मुन्नालाल कांग्रेस सरकार के खिलाफ हमलावर रहे, जैसे ही सतीश सिकरवार कांग्रेस में शामिल हुए, तो मुन्नालाल गोयल का पता था उनका मुकाबला सतीश सिकरवार से है और उन्होने सतीश सिकरवार की छवि को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत जनता के बीच वोट मांगे। मुन्नालाल गोयल कांग्रेस में सरकार मे विधायक रहे थे लिहाजा जनता उऩका कामकाज देख चुकी थी और सतीश सिकरवार की जिस छवि को लेकर मुन्नालाल 2018 में चुनाव लडे थे सतीश ने भी उस छवि के विपरीत कोरोनोकाल में लोगों की मदद कर सहानूभूति हासिल की। दूसरा बडा कारण बीजेपी के पुराने नेताओं के साथ मुन्नालाल का तालमेल भी नही बैठ पाना था मुन्नालाल ने पार्टी तो बदल ली। लेकिन बीजेपी के नेताओँ और कार्यकर्ताओं की जगह उन्ही लोगों को साथ लेकर चुनाव लडे, जिनके साथ कांग्रेस पार्टी में रहकर चुनाव लडा था। हांलाकि मुन्नालाल के समर्थन में सिंधिया और शिवराज ने चुनावी सभाएँ भी की, लेकिन उसका लाभ वो नही उठा सके। क्योंकि जमीनी स्तर पर मुन्नालाल का मैनेजमेंट इस बार सतीश सिकरवार के मुकाबले कमजोर रहा। मुन्नालाल भी ये मानकर चल रहे थे कि बीजेपी सरकार, सिंधिया-शिवराज का सपोर्ट और मात्र 14 महीने पहले की जीत उनको इस बार भी रिपीट कर देगी, ये वजह भी मुन्नालाल को इस बार चूकने की मानी जा सकती है।
केबिनेट मंत्री इमरती देवी की हार का अलग कारण
तीन बार की विधायक और केबिनेट मंत्री रही इमरती देवी का बडबोलापन और जीत की प्रति ओवर कॉन्फिडेंस उन्हे ले डूबा। हांलाकि इसके अलावा दूसरे अहम कारण भी ईमरती देवी की हार की वजह बने। इमरती देवी हारी भी तब है जब कमलनाथ के आयटम वाले बयान की वजह से इमरती देवी बीजेपी के प्रचार की एकमात्र केंद्र बन गई थी। कांग्रेस भी इसे लेकर बैकफुट पर थी लेकिन इमरती इसे मेंटेन नही कर पाई। दरअसल इमरती देवी बीजेपी में आने के बाद पुराने समीकरणों को भूल गई। उन्हे ये याद नही रहा, कि इसी सीट से बीजेपी उम्मीदवार जब उनसे तीन बार हार चुके है तो इस बार खुद बीजेपी के टिकट पर चुनाव लडने के लिए उन्हे क्या सावधानी रखनी होगी। इमरती देवी ने कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राजे को भी हल्के में लिया। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात ये भी है जो इमरती देवी भूल गई, वो ये कि गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के गृहनगर में उनके बाद बीजेपी से कोई प्रत्याशी डबरा सीट से जीत नही सका है। ऐसे में इमरती देवी को नरोत्तम मिश्रा का विश्वास हासिल करने की जरूरत थी वो भी इमरती देवी शायद नही कर पाई। क्षेत्र में कुछ मुद्दों पर समाज के प्रभावशाली लोगों से भी अऩबन एक कारण इमरती देवी के हारने की वजह बताई जा रही है।
अब आगे क्या
मुन्नालाल गोयल और ईमरती देवी सुमन के राजनैतिक जीवन का दरोमदार फिलहाल ज्योतिरादित्य सिंधिया के रहमोकरम पर है क्योंकि दोनों ही नेताओं ने दल से ज्यादा सिंधिया को महत्व दिया है और सार्वजनिक रूप से भी ये बात जाहिर कर चुके है कि उनकी आज की हैसियत दल से नही सिंधिया की देन की वजह है ऐसे में नए दल बीजेपी में उन्हे जो भी पद-कद अब अगर दिया जा सका, तो वो सिंधिया की पहल पर ही होगा स्थानीय स्तर पर पर तो फिलहाल उन्हे पार्टी के पुराने नेताओं की लाईन में जगह मिलने के आसार कम नजर आते है क्योंकि बीजेपी के टिकट की उम्मीद करने वाले नेताओं के ये लिए ये पैराशूट केंडिडेट किसी रोडे से कम नही है।