ग्वालियर14अगस्त2023।अटल बिहारी वाजपेई ट्रिपल आईटीएम ग्वालियर में आज दिनांक 14 अगस्त 2013 को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के उपलक्ष में संस्थान के प्रशासनिक भवन में प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसका उदघाटन निदेशक महोदय प्रोफेसर श्री निवास सिंह एवं प्रेसिडेंट लेडीज क्लब एबीवी ट्रिपल आईटीएम श्रीमती वंदना सिंह के कर कमलों द्वारा किया गया इस पर अवसर पर संस्थान के सभी संकाय सदस्यों एवं छात्रों ने सहभागिता की। देश के असंख्य लोगों ने विभाजन के समय जो दर्द एवं पीड़ा को भोगा था उसके बारे में प्रदर्शनी में चित्रों के माध्यम से उस दर्द को महसूस किया।एक ओर, देश में आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है, वहीं एक दुखद सच्चाई यह भी है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण उस वक्त लाखों लोगों ने विभाजन की विभीषिका झेली थी। कितने ही लोग मारे गए थे और जो बचे वह इन भयावह दृष्यों से शायद जीवन भर न उबर पाए। आज भले ही वक्त के साथ इससे जुड़े घाव भर गए हों, मगर निशान तो अब भी कायम हैं।
यही कारण है कि इस वर्ष १४ अगस्त २०२३ को विभाजन की विभीषिका को याद करने और इसी पीड़ादायी त्रासदी के बारे में युवा पीढ़ी को जागरूक करने के लिए ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन ट्रिपल आई टी एम ग्वालियर में किया गया।
१४ अगस्त २०२३ को संस्थान मे प्रदर्शनी का आयोजन किया गया
कार्यक्रम का संयोजन डॉ अरुण कुमार के द्वारा किया गया।
संस्थान की मीडिया प्रभारी दीपा सिंह सीसोदिया ने बताया कि प्रदर्शिनी में विभाजन की विभीषिका में अपने प्राण गवाने वाले तथा विस्थापन का दर्द झेलने वाले लाखों भारतवासियों के चित्रण को यथार्थ महसूस कर हम उन्हे शत शत नमन करते हैं।
प्रदर्शनी में निम्लिखित चित्रण प्रस्तुत किया गया
- ब्रिटिश सरकार न्यायकरता कि बजाय मध्यस्थ थी
- 4 जून 1947 ऐतिहासिक पत्रकार सम्मेलन
3.विभाजन के लिए संकल्प बदल मुस्लिम लीग
4.जहां सह अस्तित्व जीवन का एक तरीका था
5.प्रेस की राय यह दुखद है कि भारत को अधिराज्य का दर्जा विभाजन में मिला ना की एकता में
6.विस्थापन
7.पार्टीशन बाउंड्रीज इन पंजाब - हिंसा का प्रारंभ
9.घबराहट दर और हिंसा
10.ट्रेनों में खाली जगह के लिए संघर्ष करते शरणार्थी
11.जीवन के लिए संघर्ष - अनिश्चितताओं का बोझ
- एक और लोहे की पटरी एक ओर इंसानों की मंजिल भी एक और सफर बदहाल
14.तब दिखे श्रवण कुमार भी - रेल ने उठाया विभाजन का भार
16.बरसों खेती की है पर आज रोटी देखकर आंसू आ गए - छुक छुक करते पीछे छूट गई परंपराएं विरासत अधिकार और रिश्तेदारी
18.नई शुरुआत की उम्मीद में आखिरी ट्रेन पकड़ने की जद्दोजहद
19.कौन किसका चाचा कौन मामा बस दो सूखी रोटी और पानी एक प्याला
20.शरण
21.कभी रहती थी विरासतें परंपराएं और साज-सज्जा के अलंकार आज बस रह गया देश छुपाने का कपड़ा और अनिश्चित संसार
22.दर्द खूब दिख होगा उन बेबस आंखों में जो अपने आबाद आशियाने को बिखरा देख मरहम लगाने चल पड़े
23.पानी जो ना हिंदू को जानता है ना मुसलमान को
24.कभी मेलों में दिखती थी ऐसी अनजानों की भीड़ आज रोटी और बना देने वाले रिश्तेदार बन गए
25.कुछ ऐसा मंजर था जान पर खेलता हुजूम खड़ा था
26.उम्मीद - सीमा के उस पार बनाएं एक नया संसार चलो एक नई शुरुआत करते हैं
28.महात्मा गांधी ने शनिवार को प्रार्थना के बाद लोगों से कहा कि कानून के संचालन में सरकार को सहयोग करें और उसे अपने हाथों में ना ले