(जितेंद्र पाठक, ग्वालियर)
चुनाव के बाद अब भाजपा में चर्चा ये है कि
ग्वालियर।9जुलाई2022। ग्वालियर नगर निगम के चुनाव में इस बार भाजपा संगठन के मिसमैनेजमेंट का नुकसान क्या महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा को उठाना पड सकता है इस सवाल का जबाब पाने के लिए भाजपा के अँदरखाने में चर्चाओं का दौर गर्म है और लगातार जारी है। भाजपा के साथ साथ अन्य दलों और भाजपा के कट्टर वोटर भी इस बात की चर्चा कर रहे है। कि भाजपा का इस बार का चुनावी मैनेजमेंट हर बार की तरह नजर नही आया, बल्कि बिखरा हुआ दिखा। दरअसल इस बार भाजपा आलाकमान ने ग्वालियर में महापौर प्रत्याशी के रूप में सुमन शर्मा की घोषणा कांग्रेस के मुकाबले भी काफी देर से की। क्योंकि प्रत्याशी चयन के लिए सिंधिया, तोमर और वी.डी. शर्मा के बीच पेंच फंसा हुआ था तब तक कांग्रेस प्रत्याशी शोभा सिकरवार एक चरण का प्रचार निपटा चुकी थी
भाजपा से जुडे सूत्र बताते है कि भाजपा के संगठन और सत्ता से जुडे जिम्मेदारों ने इस बार के चुनाव को जमीनी स्तर पर लडने के बजाए कॉर्पोरेट स्टायल बना दिया, जमीनी स्तर पर काम करने के बजाए सीईओ स्टायल में चुनावी तैयारी हुई। होटल एँबीयस में मीडिया सेंटर इस तर्ज पर बनाया गया था जैसे सुबह शाम मीडिया को चुनाव की ब्रीफिंग की जाएगी। और चुनावी उलटफेर यहीं से किए जाएँगे। लेकिन वहां केवल झांकी बनाने और लुत्फ उठाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया। होटल लैंडमार्क और होटल तानसेन में चुनावी कमान संभालने के लिए जिन धुरंधर पूर्व संगठन मंत्रियों को टिकाया गया था वो उन होटलों से बाहर ही नही निकले, चुनाव संचालन की जिम्मेदारी एक निगम के पूर्व उपाध्यक्ष के पास थी जिन्होने खुद कभी कोई चुनाव नही लडा, यहां तक कि ये निगम के पूर्व उपाध्यक्ष तो स्थानीय निवासी होने बाद भी पूरे चुनावी समय में होटल में ही टिके रहे।
विगत कई चुनावों में शामिल रहे भाजपा के लोग बताते है कि भाजपा के चुनावी सिस्टम में समाज और प्रबुद्ध वर्ग की बैठकें विशेष तौर पर शामिल रहती है लेकिन महापौर प्रत्याशी के समर्थन में ऐसी बैठकों का कोई पता नही था विभिन्न समाजों से जुडी बैठकें कब, कहां, किसके साथ हो गई, पता ही नही चला। हाल ये रहा कि वार्ड प्रभारियों को पता नही नही था कि उन्हे किस वार्ड का प्रभार कब दे दिया गया है और उन्हे कहां काम करना है। मंडल अध्यक्षों तक भी जानकारी सही तरीके से नही पहुंच पाई। दरअसल इस बार सुमन शर्मा का नाम संगठन के जिस कोटे से तय हुआ था इसी कोटे के लोगों को जिम्मेदारी दे दी गई, लेकिन उन्होने भोजन, बैठक और विश्राम ज्यादा तरजीह दी। मिसमैनेजमेंट के चलते ही वचनपत्र जारी करते समय पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा के साथ वाला घटनाक्रम भी हो गया।
बहरहाल भाजपा के कई पुराने चेहरे जो विधानसभा, लोकसभा, और नगर निगम जैसे चुनावों को संचालन कर चुके है वो दबे स्वर में कहते है कि इस बार बडे नेताओं की खींचतान, संगठन के लोगों की भोजन, बैठक, विश्राम वाली कहानी और की-वोटर तक पहुंच पाने के प्रयासों में कमी की वजह से नुकसान उठाना पड सकता है क्योंकि इस बार चुनाव एकतरफा नही है पूर्व भाजपाई कांग्रेस प्रत्याशी की चुनावी रणनीति ने सीएम से लेकर प्रदेश के केबिनेट मंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों, सासंदों तक को ग्वालियर में ला खडा किया, बाकि परिणाम अब ईवीएम के गर्भ में है तो इंतजार कीजिए…..