ग्वालियर07नवंबर2022। ग्वालियर में देश का सबसे पुराना कार्तिकेय मंदिर स्थित है। इस मंदिर के पट साल में केवल एक दिन कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर खोले जाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय की 400 वर्ष पुरानी दिव्य प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि देश में भगवान कार्तिकेय का ऐसा मंदिर कहीं और नहीं है। साल में केवल एक बार खुलने वाले इस मंदिर को देखने के लिए देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं।
ग्वालियर के प्राचीन कार्तिकेय मंदिर के पट वर्ष में केवल एक बार सिर्फ 24 घंटों के लिए खोले जाते हैं। मंदिर में दर्शन के लिए आधी रात से ही भीड़ लगना शुरू हो जाती है। हालांकि इस साल मंदिर के पट पूर्णिमा से एक दिन पहले खोले गए हैं, क्योंकि पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण हो रहा है। मंदिर के पट खुलते ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। श्रद्धालु भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना कर प्रसादी चढ़ा अपनी मनोकामना मांग रहे हैं।
कार्तिकेय भगवान का यह प्राचीन मंदिर ग्वालियर के जीवाजी गंज में स्थित है। मंदिर के 80 वर्षीय पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा का कहना है कि यह मंदिर लगभग 400 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है और जब ग्वालियर में सिंधिया राजाओं का शासन हुआ तो उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से यहां लगातार पूजा अर्चना का दौर जारी है। देशभर के कई मंदिरों के पट जहां सुबह ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाते हैं। वहीं, साल में केवल एक दिन खुलने वाले इस मंदिर के पट मध्यरात्रि में ठीक बारह बजे खुलते हैं और इसी के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं। कार्तिकेय भगवान का मंदिर वैसे तो मध्यप्रदेश में स्थित है। लेकिन यहां दर्शन करने के लिए यूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली के साथ ही देश के दूरस्थ राज्यों से भी भक्त ग्वालियर पहुंचते हैं और भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना कर दर्शन का सुख प्राप्त करते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
पुजारी जमुना प्रसाद शर्मा शास्त्रों के हवाले से बताते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती ने जब अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के विवाह की सोची तो दोनों के सामने शर्त रखी कि जो ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा, उसका विवाह सबसे पहले करेंगे। इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर ब्रह्मांड परिक्रमा करने निकल गए। भगवान गणेश ने बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की और सामने आकर बैठ गए। उनका विवाह हो गया। यह बात नारदमुनि के जरिये कार्तिकेय को पता चली तो वे क्रोधित हो गए। यह पता चलने पर शिव पार्वती उन्हें मनाने पहुंचे तो उन्होंने श्राप दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा वह सात जन्मों तक नरक भोगेगा। लेकिन माता-पिता के बहुत मनाने पर वे अपने श्राप को थोड़ा परिवर्तन करने को राजी हुए। उन्होंने वरदान दिया कि उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा पर जो भी भक्त उनके दर्शन करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। तभी से उनके दर्शन वर्ष में एक बार करने की प्रथा शुरू हुई।