ग्वालियर। जिला पंजीयन विभाग के अधिकारियों की सांठगांठ से सिरौल क्षेत्र की एक बहुमूल्य जमीन जिस पर तत्कालीन कलेक्टर द्वारा क्रय विक्रय पर रोक लगा रखी थी उसका सौदा 20 साल पुराने फर्जी खसरे से करवाने के बाद रजिस्ट्री कर दी गई। इतना ही नही, जिस जमीन की कीमत आयकर विभाग ने साढे पांच करोड आंकी, उसे मात्र 29 लाख में बेचने का कारनामा किया, ताकि स्टांप शुल्क बचाया जा सके। इस मामले का खुलासा होने के बाद भोपाल तक पहुंची शिकायत पर पंजीयन विभाग के डीआईजी द्वारा जिला रजिस्ट्रार से इसकी जांच करवाई जा रही है।
कलेक्टर का आदेश छिपाने 20 साल पुराने खसरे का इस्तेमाल
जानकारी के मुताबिक ग्राम सिरौल के सर्वे क्रमांक 358 रकवा 9.50 बीघा पर वर्ष 2011 में तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने विवादास्पद मानते हुए उसे पेसिंलि अभिलेख दर्ज कराते हुए क्रय विक्रय पर रोक लगा दी थी इसी बीच वर्ष 2013 में भूमाफिया से अधिकारियों ने मिलकर 80 साल के बुजुर्ग उत्तम सिंह की जमीन का सौदा एमके एंटरप्राइजेज की साझेदार उर्मिला सिंह पत्नी एसबी सिंह एवं कुसुम गोयल पत्नी जीसी गोयल के साथ 31 मार्च 2013 को कर दिया गया। यह रजिस्ट्री उत्तम सिंह द्वारा किया जाना दिखाया गया है। जबकि मजेदार बात ये है कि इस कथित रजिस्ट्री के संपादित होने के बात उत्तम सिंह द्वारा 25 जनवरी 2014, 23 दिसंबर 2014 को कलेक्टर से उसकी जमीन से पेंसिलि आदेश हटाने के लिए पत्र लिखे गए, इतना ही नही 31 मार्च 2014 को सीमांकन के लिए भी पत्र भी उत्तम सिंह की तरफ से लिखा गया। अब सवाल ये उठता है कि यदि उत्तम सिंह ने इसके पूर्व वर्ष 2013 में ही रजिस्ट्री कर दी थी तो फिर वो उसी जमीन के लिए दर्ज पेसिंलि हटाने के लिए आवेदन क्यों देते।
उत्तम सिंह की पत्नी आयकर विभाग के नोटिस से सकते में
उत्तम सिंह की फरवरी 2019 में मृत्यु हो गई थी उसके एक साल बाद उनकी 70 वर्षीय वृद्ध पत्नी गंगादेवी उस समय हैरान रह गई, जब फरवरी 2020 में एक शिकायत के आधार पर उनके पास आयकर विभाग की तरफ से एक नोटिस दिया गया। जिसमें सिरौल के सर्वे क्रमांक 358 की 9.50 बीघा भूमि को 29 लाख में बेचने पर आयकर जमा नही कराया। नोटिस में स्पष्ट लिखा है कि इस भूमि का बाजारू मूल्य पांच करोड 51 लाख 50 हजार रूपए है। आपके द्वारा मात्र 2.10 लाख रूपए स्टांप शुल्क जमा कराया गया है अतः 37.88 लाख रूपए की अंतर राशि जमा कराएं। इस नोटिस के बाद गंगादेवी ने अपने रिश्तेदार भूपेंद्र सिंह की मदद से पंजीयन कार्यालय में आरटीआई के जरिए सारे दस्तावेज निकलवाए, जिसमें खसरे का एक दस्तावेज बेहद चौंकाने वाला था जिसमें खसरा क्रमांक के क्रम 94,95,85 व 87 थे जबकि हकीकत में इस जमीन के खसरे का इस तरह का कोई क्रम नही था। इससे उन्हे शक हुआ कि उनके पति के नाम से 20 साल पुराने फर्जी खसरे से उक्त रजिस्ट्री संपादित कराई गई है जिसमें पंजीयन विभाग के अधिकारियों की भी पूरा तरह सांठगांठ है क्योंकि एमके एंटरप्राइजेज के क्रेतागणों में एक महिला पूर्व पंजीयन अधिकारी की पत्नी है चूंकि उत्तम सिंह की मृत्यु हो चुकी है इसलिए गंगादेवी ने इस संबंध में एक विस्तृत शिकायत डीजीपी, प्रमुख सचिव लोकायुक्त भोपाल, महानिदेशक पंजीयक, संभागीय आयुक्त, जिलाधीश, पुलिस अधीक्षक से की है।
जमीन पर अभी भी उत्तमसिंह की पत्नी और पुत्र काबिज
भूमाफिया ने कथित खसरे के जरिए अपने नाम विक्रय पत्र संपादित करा लिया, किंतु आज भी उस जमीन पर गंगादेवी और उसके पुत्रों काबिज है। वे वहां खेती बाडी का काम कर रहे है। पटवारी और तहसीलदार की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है।
इनका कहना है
दिनेश गौतम, जिला पंजीयक – इस मामले की जांच चल रही है और संबंधित सबरजिस्ट्रार ने अपना जबाब भी पेश कर दिया है। इसके अलावा अन्य कोई जानकारी फाईल देखकर ही बता पाऊंगा।
डीडी रामपुरे, सेवानिवृत्त सबरजिस्ट्रार – किसी भी जमीन की रजिस्ट्री चालू खसरा पंचसाला से ही होनी चाहिए। 20 साल पुराने खसरे से की गई रजिस्ट्री शंका को जन्म देती है इसे जांच के दायरे में आना चाहिए। जहां तक कलेक्टर द्वारा खसरे में पेसिंलि दर्ज है और इसकी जानकारी पंजीयन विभाग को है तो रजिस्ट्री नही की जानी चाहिए।